अध्यक्ष पद के लिए गहलोत को छोड़नी होगी सीएम की कुर्सी..!
By Aajtakkhabar Admin 23 September 2022
Aajtakkhabar:नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। अधिसूचना जारी होने के साथ कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव का बिगुल बज गया है। वरिष्ठ नेता शशि थरूर और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के उम्मीदवार के तौर पर उतरने के संकेतों के बाद इस बात की पुख्ता संभावना है कि 22 साल बाद कांग्रेस के अध्यक्ष का चयन चुनाव के जरिये होगा। इस बीच राहुल गांधी राहुल की ओर से संकेत दिया गया है कि पार्टी उदयपुर घोषणापत्र पर आगे बढ़ते हुए ‘एक व्यक्ति, एक पद’ के फॉर्मूले पर आगे बढ़ेगी।
गहलोत के बयान से भी मिल रहे संकेत
गहलोत ने भी पार्टी हाईकमान के संकेतों के सुर में सुर मिलाया है। समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक गहलोत का कहना है कि पार्टी का जो फैसला होगा, उसे वह स्वीकार करेंगे। गहलोत सोनिया गांधी के विश्वास पात्र माने जाते हैं। अशोक गहलोत ने बुधवार को सोनिया गांधी से मुलाकात की थी। सूत्रों की मानें तो अशोक गहलोत लगातार पार्टी के शीर्ष नेताओं के संपर्क में बने हुए हैं। संकेत साफ हैं कि गहलोत अध्यक्ष पद के चुनाव में उम्मीदवार के तौर पर उतर सकते हैं।
राहुल ने किया बड़ा इशारा
दरअसल राहुल गांधी ने साफ कर दिया है कि जो भी कांग्रेस का अध्यक्ष बने, उसे यह याद रखना होगा कि वह एक विचारधारा और भारत की दृष्टि का प्रतिनिधित्व करेगा। समाचार एजेंसी एएनआइ की रिपोर्ट के मुताबिक राहुल ने कहा- हमने उदयपुर में जो फैसला किया था, वह कांग्रेस की प्रतिबद्धता है। राहुल ने उम्मीद जताई कि पार्टी के अध्यक्ष पद को लेकर भी यह प्रतिबद्धता बरकरार रहेगी। सनद रहे कांग्रेस ने बीते दिनों उदयपुर में आयोजित बैठक में एक व्यक्ति, एक पद के फॉर्मूले को लेकर एक घोषणा पत्र जारी किया था।
Edited By:Sachin Lahudkar
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देश में एक राष्ट्र, एक चुनाव को लेकर बहस छिड़ी हुई है। इस मामले पर पक्ष और विपक्ष आमने-सामने हैं
एक तरफ जहां मोदी सरकार का कहना है कि चुनाव के खर्च में कमी करने के लिए यह कदम बेहद जरूरी है। वहीं, विपक्षी दलों का मानना है कि इससे संघीय ढांचा कमजोर होगा।क्या वाकई लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराने से देश को आर्थिक फायदा होगा? एक रिपोर्ट के जरिए इस सवाल का जवाब दिया गया है।पंचायत से लेकर लोकसभा तक के चुनाव एक साथ कराने से ही चुनाव खर्च कम नहीं हो जाएगा, इसके लिए जरूरी है कि सारे चुनाव एक सप्ताह के अंदर कराए जाएं। अगर ऐसा होता है तो चुनाव पर आने वाले खर्च को घटा कर एक तिहाई किया जा सकता।
एक अध्ययन के अनुसार, स्थानीय चुनाव से लेकर लोकसभा तक सारे चुनाव एक साथ कराने पर 10 लाख करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है, लेकिन अगर सभी चुनाव एक हफ्ते के अंदर कराए जाएं तो ये खर्च घट कर तीन से पांच लाख करोड़ रुपये तक आ सकता है। पंचायत से लेकर लोकसभा के चुनाव एक साथ कराने पर ₹10 लाख करोड़ खर्च होने का अनुमान है।
साल 2019 के लोकसभा चुनावों में 60,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। लोकसभा चुनाव 2024 पर ₹1.20 लाख करोड़ खर्च होने का अनुमान है।
विधानसभा सीटों पर खर्च
देश में 4,500 विधानसभा सीटें है अगर साथ कराए जाए तो इस पर तीन लाख करोड़ रुपये खर्च हो सकते हैं।
स्थानीय निकाय चुनाव पर खर्च
देश में 2.5 लाख ग्राम पंचायते हैं। 650 जिला परिषद, 7,000 मंडल, 2 लाख 50 हजार ग्राम पंचायत सीटों के चुनाव पर 4.30 लाख करोड़ रुपये खर्च हो सकते है। देश में हैं 500 नगरपालिका हैं। सभी सीटो पर चुनाव एक साथ कराने पर 1 लाख करोड़ रुपये खर्च का अनुमान है।मौजूदा तौर-तरीके, पोल पैनल कितना असरदार है और राजनीतिक दलों की ओर से चुनाव आचार संहिता का कड़ाई से पालन, ये सभी चीजें खर्च घटाने में अहम भूमिका निभाएंगी।अध्ययन के मुताबिक, अगर चुनाव को कई चरणों मे न कराया जाए तो इससे चुनाव पर खर्च कम हो सकता है, क्योकि विज्ञापन और यात्राओं पर कम खर्च होगा।
Edited by; sachin lahudkar