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गुजरात में भाजपा ने 156 सीटों के साथ बंपर जीत दर्ज की तो हिमाचल में कांग्रेस को 40 सीटें मिली। 

Aajtakkhabar:चुनावी परिणाम इन पार्टियों के बड़े के लिए खास महत्व रखते हैं। आइए जानें आखिर गुजरात और हिमाचल चुनाव नतीजों के 5 बड़े नेताओं पर क्या है मायने..इस जीत ने यह साबित कर दिया है कि गुजरात की जनता अभी तक मोदी को काफी पसंद करती है।

दूसरी ओर इस चुनाव ने साबित कर दिया है कि पीएम मोदी का चुनावी भाषण का असर और पीएम का गुजरात की जनता से जुड़ाव कम नहीं हुआ है। गुजरात में भाजपा की कई प्रदेश स्तर की नाकामियों को पीएम की रैलियों ने भुला दिया।

गुजरात में कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है तो हिमाचल में एक बार फिर बदलाव के साथ उनकी सरकार बनने जा रही है। हिमाचल में जीत के बावजूद इसका श्रेय कांग्रेस की प्रदेश इकाई को जाता है न की राहुल गांधी को। राहुल समेत कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने गुजरात से दूरी बनाई रखी, जिसके चलते उसे बड़ा नुकसान भी झेलना पड़ा। राहुल ने केवल भारत जोड़ो यात्रा पर फोकस रखा, लेकिन इसका भी फायदा उनको चुनावों में मिलता हुआ नहीं दिख रहा है।

नड्डा की अध्यक्षता में ही भाजपा ने गुजरात में प्रचंड जीत पाई, लेकिन अपने गृह क्षेत्र हिमाचल में नड्डा पार्टी को जीत नहीं दिला सके। जेपी नड्डा ने खुद हिमाचल में कई रैलियां की थी, जिसका असर इस रूप में दिखा कि प्रदेश में भाजपा का जनाधार कमजोर नहीं हुआ, भाजपा की सीटें तो घटीं पर कांग्रेस के मुकाबले केवल एक फीसद कम वोट शेयर मिला। नड्डा एक कमजोर मुख्यमंत्री और सत्ता विरोधी लहर से उत्पन्न नुकसान को दूर करने में असमर्थ रहे। 

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को गुजरात में बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा है। नेहरू-गांधी परिवार के सबसे वफादार माने जाने वाले खरगे को खुद का बयान ही नुकसान पहुंचा गया। पीएम मोदी की तुलना रावण से करने से कांग्रेस पार्टी को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा। दूसरी ओर हिमाचल में जीत भी उनकी अध्यक्षता में हुई है, लेकिन अब उन्हें अपने नेताओं को बनाए रखने और पांच साल तक सरकार चलाने में उनकी मदद करनी होगी। 

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अरविंद केजरीवाल के लिए गुजरात और हिमाचल चुनाव में कुछ भी खोने के लिए नहीं था। अन्ना आंदोलन से पैदा हुई केजरीवाल की पार्टी गुजरात की जनता का विश्वास तो नहीं जीत पाई लेकिन गुजरात में उसकी बड़ी एंट्री हुई है। गुजरात में 5 सीटों के साथ 10 फीसद से अधिक वोट शेयर पाना भी केजरीवाल के लिए बड़ी उपलब्धि है। इसी के साथ उनकी पार्टी अब राष्ट्रीय पार्टी भी बन गई है।

Edited By:Sachin Lahudkar

अगर आपके पास वोटिंग कार्ड नहीं है तो जानें कैसे कर सकते हैं वोट।

Aajtakkhabar:गुजरात विधानसभा की कुल 182 सीटों में से 89 पर हुए पहले चरण में 62 फीसद मतदान हुआ है। अब 5 तारीख को दूसरे चरण का मतदान होना है। वहीं इससे एक दिन पहले यानी 4 दिसंबर को दिल्ली के MCD चुनाव हैं। ऐसे में अगर आप भी इन चुनावों में वोटिंग करना चाहते हैं और आपके पास वोटिंग कार्ड नहीं है तो यह खबर आपके काम की है। 

आपको बता दें कि जिन लोगों का नाम चुनाव आयोग के वोटिंग लिस्ट में है, वो वोट डाल सकते हैं। ज्यादातर लोग सोचते हैं कि अगर उनके पास वोटर आईडी कार्ड नहीं है तो वे मतदान नहीं कर सकते, लेकिन ऐसा नहीं हैं। हम यहां आपको ऐसे तरीके बताने जा रहे हैं, जिसके माध्यम से आप बिना वोटिंग कार्ड के मतदान कर सकते हैं।

Credit by-Zee business

इन का इस्तेमाल कर करें वोटिंग

  1. वोटिंग कार्ड न होने पर अगर आपके पास पासपोर्ट है तो आप उससे भी मतदान कर सकते हैं।
  2. ड्राइविंग लाइसेंस होने पर भी आप वोट डाल सकते हैं।
  3. अगर कोई केंद्र या राज्य सरकार का कर्मचारी हैं, तो वो अपने वोटो युक्त आईडी कार्ड की मदद से मतदान कर सकता है।
  4. आधार कार्ड की मदद से भी आप वोट डाल सकते हैं।
  5. पैन कार्ड भी वोटिंग कार्ड न होने पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
  6. पोस्ट आफिस या बैंक द्वारा फोटो युक्त पासबुक होने पर भी मतदान किया जा सकता है।
  7. नेशनल पापुलेशन रजिस्टर (NPR) द्वारा जारी स्मार्ट कार्ड भी काम आ सकता है।
  8. मनरेगा का जॉब कार्ड भी वोटिंग के लिए स्वीकार्य माना जाएगा।
  9. श्रम मंत्रालय द्वारा किसी भी स्कीम के तहत जारी स्वास्थ्य बीमा कार्ड होने पर भी मतदान किया जा सकता है।
  10. फोटोयुक्त पेंशन दस्तावेज भी वोटिंग के काम आएगा।
  11. विधायक, सांसद, एमएलसी द्वारा जारी अधिकारिक पहचान पत्र भी मतदान में काम आता है।
  12. सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जारी यूनिक डिसेबिलिटी आईडी कार्ड (UDID) भी वोटिंग में इस्तेमाल किया जा सकता हैl

Edited By: Sachin Lahudkar

अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की एंट्री ने गुजरात चुनाव त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया है।

Aajtakkhabar:पिछले 27 सालों से गुजरात में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार है। गुजरात में भाजपा की नजरें रिकार्ड सातवें कार्यकाल पर टिकी हुई हैं। वहीं, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की एंट्री ने गुजरात चुनाव त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया है।

गुजरात के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के अनुसार, पहले चरण में दक्षिण गुजरात और कच्छ-सौराष्ट्र क्षेत्र के 19 जिलों में 788 उम्मीदवार मैदान में हैं। इन उम्मीदवारों में 70 महिलाएं और 339 निर्दलीय हैं। 89 सीटों में से 14 अनुसूचित जनजाति और सात दलितों के लिए आरक्षित हैं। मतदान सुबह आठ बजे होगा और शाम साढ़े पांच बजे तक चलेगा। पहले चरण के तहत विधानसभा क्षेत्रों में कुल 2,39,76,670 मतदाता रजिस्टर्ड हैं। इसमें 1,24,33,362 पुरुष, 1,15,42,811 महिला और 497 थर्ड जेंडर मतदाता शामिल हैं।

PM Modi ने की रिकॉर्ड वोटिंग की अपील

पीएम मोदी ने गुजरात में पहले चरण का मतदान शुरू होने से पहले ट्वीट किया है। पीएम ने लिखा, आज गुजरात में पहले चरण का मतदान है। मैं आज मतदान करने वाले सभी लोगों, विशेष रूप से पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं से रिकॉर्ड संख्या में अपने मताधिकार का प्रयोग करने की अपील करता हूं।

पहले चरण के मतदान के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

पहले चरण के मतदान के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

गुजरात में पहले चरण के मतदान के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। गुजरात के DGP आशीष भाटिया ने बताया कि इसके लिए अतिरिक्त बल तैनात किए गए हैं, अर्धसैनिक बल भी तैनात हैं। लोग बिना किसी डर के मतदान कर सकें इसके लिए सभी इंतजाम किए गए हैं।

एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, इस सूची में 61 उम्मीदवारों के साथ आम आदमी पार्टी सबसे ऊपर है.

2017 के गुजरात विधानसभा चुनावों में आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों की कुल संख्या 238 थी.

राज्य में विधानसभा चुनाव दो चरणों में हो रहे हैं. दोनों चरणों के उम्मीदवारों के सर्वेक्षण के बाद एडीआर द्वारा सोमवार को जारी रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस के 60 और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 32 उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं.

एडीआर ने गुजरात में एक और पांच दिसंबर को होने वाले दो चरणों के चुनाव के लिए सभी 1,621 उम्मीदवारों के हलफनामों के विश्लेषण का हवाला देते हुए कहा कि हत्या, बलात्कार और हत्या के प्रयास से संबंधित गंभीर अपराधों के लिए कुल 192 उम्मीदवारों पर मामले दर्ज हैं, जिसमें कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी (आप) के 96 उम्मीदवार शामिल हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, गंभीर अपराधों वाले उम्मीदवारों के मामले में ‘आप’ 43 उम्मीदवारों के साथ सूची में सबसे ऊपर है जबकि कांग्रेस के 28 और भाजपा के 25 ऐसे उम्मीदवार मैदान में हैं.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, एडीआर विश्लेषण से पता चलता है कि आपराधिक मामलों वाले 330 उम्मीदवारों में पहले चरण की 89 सीटों पर चुनाव लड़ रहे 788 उम्मीदवारों में से 167 और दूसरे चरण की 93 सीटों पर कुल 822 उम्मीदवारों में से 163 शामिल हैं.

राज्य के कुल 182 सदस्यीय विधानसभा के लिए चुनाव में आप, कांग्रेस और भाजपा के क्रमशः 181, 179 और 182 उम्मीदवार हैं.

एडीआर ने कहा कि यह ‘गंभीर अपराधों’ को गैर-जमानती अपराधों के रूप में परिभाषित करता है, जिसमें अधिकतम पांच साल या उससे अधिक की सजा हो सकती है. इनमें मारपीट, हत्या, अपहरण और बलात्कार के साथ-साथ महिलाओं के खिलाफ अपराध और भ्रष्टाचार के मामले शामिल हैं.

महिलाओं के खिलाफ अपराधों से जुड़े मामलों में 18 उम्मीदवारों का नाम है, जबकि एक उम्मीदवार पर बलात्कार का आरोप है. पांच के खिलाफ हत्या का आरोप है और 20 पर हत्या के प्रयास का आरोप है.

अहमदाबाद जिले की दसक्रोई सीट से आप के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं किरण पटेल के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज है. पाटन सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार किरीट पटेल पर हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया है, जबकि पंचमहल जिले की शेहरा सीट से चुनाव लड़ रहे भाजपा के जेठा भारवाड़ पर बलात्कार, अपहरण, जबरन वसूली, महिला का शील भंग करने और अन्य आरोप हैं.

एडीआर ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि उम्मीदवारों के चयन में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का राजनीतिक दलों पर कोई असर नहीं पड़ा है.

ज्ञात हो कि शीर्ष अदालत ने 13 फरवरी, 2020 को विशेष रूप से राजनीतिक दलों को निर्देश दिया था कि वे इस तरह के चयन के कारण बताएं और बिना आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अन्य व्यक्तियों को उम्मीदवारों के रूप में क्यों नहीं चुना जा सकता है. इन अनिवार्य दिशानिर्देशों के अनुसार, इस तरह के चयन का कारण संबंधित उम्मीदवार की योग्यता, उपलब्धियों और योग्यता के संदर्भ में होना चाहिए.

एडीआर ने कहा, ‘2022 में छह राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान यह देखा गया कि राजनीतिक दलों ने व्यक्ति की लोकप्रियता, अच्छे सामाजिक कार्य, मामले राजनीति से प्रेरित होने आदि जैसे निराधार कारण दिए.’

एडीआर ने कहा, ‘दागी पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के ये ठोस कारण नहीं हैं. यह डेटा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि राजनीतिक दलों को चुनावी प्रणाली में सुधार करने में कोई दिलचस्पी नहीं है और हमारा लोकतंत्र कानून तोड़ने वालों के हाथों पीड़ित रहेगा, जो कानून निर्माता बन जाते हैं.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

Edited by: Sachin Lahudkar

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे नीत ‘बालासाहेबांची शिवसेना’ के विधायक संजय गायकवाड ने राज्यपाल को राज्य से बाहर भेजने की मांग की है.

Aajtakkhabar:छत्रपति शिवाजी महाराज पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की कथित टिप्पणी को लेकर ऊपजे विवाद के बीच महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे नीत ‘बालासाहेबांची शिवसेना’ के विधायक संजय गायकवाड ने राज्यपाल कोश्यारी को राज्य से बाहर स्थानांतरित करने की मांग की.

बुलढाणा विधानसभा सीट से विधायक गायकवाड ने दावा किया कि कोश्यारी ने मराठा साम्राज्य के संस्थापक के खिलाफ टिप्पणी की है और अतीत में भी विवादों को जन्म दिया है.

विधायक ने , ‘राज्यपाल को समझना चाहिए कि छत्रपति शिवाजी महाराज के आदर्श कभी पुराने नहीं पड़ते और उनकी तुलना दुनिया के किसी भी अन्य महान व्यक्ति से नहीं की जा सकती है. मेरा केंद्र के भाजपा नेताओं से अनुरोध है कि जिस व्यक्ति को राज्य के इतिहास का पता नहीं है, वह कैसे यह काम करता है, उसे दूसरी जगह भेजा जाना चाहिए.’

गायकवाड मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे नीत ‘बालासाहेबांची शिवसेना’ के विधायक हैं, जिसने महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ मिलकर सरकार बनाई है.

उधर, राकांपा नेता सुप्रिया सुले ने सोमवार को आश्चर्य जताया कि उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मराठा शासक के ‘अपमान’ का ‘बचाव’ कैसे कर सकते हैं. वहीं, इसे लेकर मुंबई सहित महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में भी कोश्यारी के खिलाफ प्रदर्शन हुए.

उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) से जुड़े प्रदर्शनकारियों ने टीवी पर चर्चा के दौरान छत्रपति शिवाजी महाराज का ‘अपमान’ करने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी की भी आलोचना की.

सुले ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मराठा शासक का नाम लेने का नैतिक अधिकार नहीं है.

गौरतलब है कि कोश्यारी ने छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में कहा था कि वह ‘पुराने जमाने’ के आदर्श हैं. इसे लेकर पूरे राज्य में गुस्से का माहौल है, हालांकि रविवार को उपमुख्यमंत्री फडणवीस ने इस मामले में उनका बचाव किया.

फडणवीस ने कहा था, ‘यह बात स्पष्ट है कि छत्रपति शिवाजी महाराज सूरज-चांद का अस्तित्व रहने तक महाराष्ट्र और हमारे देश के आदर्श और हीरो रहेंगे. कोश्यारी के मन में भी इसे लेकर कोई संशय नहीं है. इसलिए राज्यपाल द्वारा की गई टिप्पणी के कई मायने निकलते हैं.’

भाजपा के राज्यसभा सदस्य और छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज उदयनराजे भोसले ने सोमवार को मांग की कि मराठा शासक पर टिप्पणी करने वाले राज्यपाल कोश्यारी और भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी को राज्य से बाहर किया जाए.

भोसले ने कहा कि अगर उनकी मांग नहीं मानी गई तो वह उसी आधार पर आगे की रणनीति तय करेंगे.

उधर, सुले ने आश्चर्य जताया कि पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस कैसे छत्रपति शिवाजी महाराज के ‘अपमान’ का बचाव कर रहे हैं.

राकांपा नेता ने पुणे में कहा, ‘मुझे फडणवीस जी से ऐसी आशा नहीं थी. वह पांच साल मुख्यमंत्री रहे हैं. आपकी विचारधारा अलग हो सकती है, लेकिन अगर छत्रपति शिवाजी महाराज का अपमान हो रहा है और आप उसका बचाव कर रहे हें, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है. ऐसे में भाजपा को छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम लेने का कोई अधिकार नहीं है.’

त्रिवेदी के वीडियो क्लिप का हवाला देते हुए सुले ने कहा कि ऐसा लग रहा है कि ये लोग बार-बार छत्रपति शिवाजी महाराज का अपमान करने का पाप कर रहे हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है और इसे रोकना चाहिए.

इस बीच राकांपा ने सोमवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी की है.

राकांपा के मुख्य प्रवक्ता महेश तापसे ने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में आरोप लगाया कि राज्यपाल ने कई मौकों पर विवादित बयान दिए हैं जिससे महाराष्ट्र के लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं और यह आचरण अस्वीकार्य है.

उल्लेखनीय है कि राज्यपाल की टिप्पणी के बाद उन्हें हटाने की मांग को लेकर मुंबई, नागपुर, पुणे और औरंगाबाद में प्रदर्शन हुए हैं.

शिवसेना के उद्धव बालासाहेब ठाकरे नीत गुट के नागपुर जिला अध्यक्ष किशोरी कुमेरिया के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने महाल इलाके में गांधी गेट पर प्रदर्शन किया. वहीं, राकांपा कार्यकर्ताओं ने वैरिटी चौराहा और कांग्रेस युवा मोर्चा ने सिविल लाइंस में राजभवन के पास प्रदर्शन किया.

पुणे में, राकांपा की शहर इकाई ने भी प्रदर्शन किया जिसमें कार्यकर्ताओं ने कोश्यारी जैसे वस्त्र पहनकर भाग लिया. उन्होंने राज्यपाल के खिलाफ नारेबाजी भी की.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

Edited By: Sachin Lahudkar

7 दिसंबर से 29 दिसंबर तक चलेगा। आगामी शीतकालीन सत्र में कुल 17 कार्य दिवस होंगे। इसकी जानकारी केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने दी।

Aajtakkhabar:केंद्रीय मंत्री ने एक ट्विटर पोस्ट में कहा, संसद का शीतकालीन सत्र, 7 दिसंबर 2022 से शुरू होगा और 29 दिसंबर 2022 तक चलेगा, जिसमें 23 दिनों में 17 बैठकें होंगी। अमृत काल के बीच सत्र के दौरान विधायी कार्य और अन्य मुद्दों पर चर्चा की उम्मीद है। रचनात्मक बहस के लिए हम तैयार हैं।

मौजूदा सदस्यों के निधन के मद्देनजर आगामी सत्र का पहला दिन स्थगित होने की संभावना है। हाल ही में जिन मौजूदा सांसदों का निधन हुआ है उनमें समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव भी शामिल हैं।

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यह भी कहना है कि चूंकि कोविड की संख्या में काफी गिरावट आई है

सूत्रों का यह भी कहना है कि चूंकि कोविड की संख्या में काफी गिरावट आई है और लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय के अधिकांश सदस्यों और कर्मचारियों का पूरी तरह से टीकाकरण हो चुका है, इसलिए सत्र बिना किसी बड़े कोविड-प्रेरित प्रतिबंधों के आयोजित होने की संभावना है।

यह पहला सत्र होगा, जिसके दौरान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, जो राज्यसभा के सभापति हैं, उच्च सदन में कार्यवाही का संचालन करेंगे। सरकार आगामी सत्र के दौरान पारित होने वाले विधेयकों की एक सूची तैयार करेगी, जबकि विपक्ष जरूरी मामलों पर चर्चा की मांग करेगा।

पिछले सत्र के दौरान सात विधेयक लोकसभा और पांच विधेयक राज्यसभा द्वारा पारित किए गए।

बता दें कि मानसून सत्र 18 जुलाई को शुरू हुआ था और 8 अगस्त को स्थगित हुआ था। इस सत्र में 22 दिनों की अवधि में 16 सत्र हुए थे। सत्र के दौरान लोकसभा में छह विधेयक पेश किए गए। पिछले सत्र के दौरान सात विधेयक लोकसभा और पांच विधेयक राज्यसभा द्वारा पारित किए गए। एक विधेयक वापस ले लिया गया। सत्र के दौरान संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयकों की कुल संख्या 5 थी।पिछले सत्र के दौरान, दोनों सदनों में मूल्य वृद्धि सहित 5 अल्पकालिक चर्चाएँ रखी गईं। लोकसभा की उत्पादकता लगभग 48 प्रतिशत और राज्यसभा की 44 प्रतिशत थी।

Edited By: Sachin Lahudkar