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एस जयशंकर बोले- ‘वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर है समूह का संदेश l

Aajtakkhbhar :प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने G20 की शुरुआत होने से पहले मोरक्को में आए भूकंप में हुई कई लोगों की मृत्यु पर शोक व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि भारत हर संभव मदद करने के लिए तैयार है।

बता दें कि 10 सितंबर तक चलने वाले इस समिट के लिए दिल्ली पूरी तरह से तैयार है। दिल्ली को दुल्हन की तरह सजाया गया है और सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। मेहमानों के स्वागत और उनकी सुरक्षा के लिए व्यवस्थाएं की गई हैं। इस खास सम्मेलन के दौरान दुनियाभर की नजरें भारत की ओर रहेंगी।

वहीं, G20 शिखर सम्मेलन की शुरुआत से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते गुरुवार (8 सितंबर) को भी विभिन्न देशों के जनप्रतिनिधियों के साथ द्विपक्षीय बैठक की थी।

PM मोदी ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, मॉरीशस के पीएम प्रविंद कुमार जुगनाथ के साथ द्विपक्षीय वार्ता में शामिल हुए। जी20 समिट के आगाज के साथ ही पहले सत्र में ही कई बड़े फैसले लिए गए हैं। पीएम मोदी ने आज पहले सत्र ‘वन अर्थ’ के समापन के बाद मीडिया को संबोधित किया। पीएम ने कहा कि जी20 समिट के पहले सत्र में स्वच्छ ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन बनाने पर सहमति बनी है। पीएम ने आगे कहा कि समावेशी ऊर्जा परिवर्तन के लिए खरबों डॉलर की आवश्यकता है और विकसित देश इसमें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और आगे भी निभा सकते हैं।

जी-20 शिखर सम्मेलन के पहले सत्र के बाद पीएम मोदी ने कई बड़े एलान किए। पीएम ने कहा कि भारत ने नई दिल्ली साझा घोषणा पत्र जारी कराने को लेकर सदस्य देशों के बीच सहमति बना ली है।

पीएम नरेन्द्र मोदी ने सम्मेलन के पहले दिन दोपहर बाद तकरीबन 3.30 बजे अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन, ब्रिटेन के पीएम ऋषि सुनक, आस्ट्रेलिया के पीएम एंथोनी अलबनिजी, जापान के पीएम फुमियो किशिदा, चीन के पीएम ली चियांग, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति विदोदो, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज लुला डी सिल्वा,  जैसे दिग्गज वैश्विक नेताओं के समक्ष इस बात का ऐलान किया।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि बेहतर, बड़े और अधिक प्रभावी बहुपक्षीय विकास बैंक (MDB) की आवश्यकता पर सहमति व्यक्त की गई। बेहतर बड़े और अधिक प्रभावी एमडीबी का होना बेहद जरूरी है क्योंकि दुनिया भर से विकासात्मक मांगें बहुत बढ़ रही हैं, इसलिए इन संस्थानों को बेहतर और बड़ा बनाना होगा। उन्होंने कहा कि बहुपक्षीय विकास बैंक के पूंजी पर्याप्तता ढांचे पर एक स्वतंत्र पैनल की सिफारिशों के कार्यान्वयन के लिए जी-20 रोडमैप का समर्थन किया गया।

निर्मला सीतारमण ने कहा कि रोडमैप का अनुमान है कि सीएएफ और इसके उपायों के कार्यान्वयन से संभावित रूप से अगले दशक में लगभग 200 बिलियन अमरीकी डॉलर की अतिरिक्त ऋण देने की गुंजाइश पैदा होगी।विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने कहा कि जी-20 के नेताओं ने आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों की निंदा की है और माना कि यह अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए सबसे गंभीर खतरों में से एक है।  काला सागर अनाज गलियारे पर उन्होंने कहा कि इस बारे में कई प्रकार की चर्चाएं चल रही हैं। रूस के विदेश मंत्री, तुर्किये के राष्ट्रपति और उनका प्रतिनिधिमंडल, संयुक्त राष्ट्र महासचिव और कई लोग यहां पर मौजूद हैं।

मोदी सरकार 18 से 22 सितंबर तक होने वाले संसद के विशेष सत्र में इंडिया का नाम बदलकर भारत करने का प्रस्ताव ला सकती है।

Aajtakkhabr: सदियों से इस देश को कई नामों से बुलाया जा रहा है। लेकिन इनमें से सबसे प्रचलित भारत है।

अंग्रेजों के आने से पहले भारत को हिन्दुस्तान, जम्बूद्वीप, भारतखण्ड, हिमवर्ष, अजनाभवर्ष,आर्यावर्त, हिन्द और हिन्दुस्तान कहा जाता था। लेकिन अंग्रेजों के आने के बाद भारत को इंडिया कहा जाने लगा।

जब अंग्रेजों को पता चला कि भारत सभ्यता सिंधु घाटी है। वहीं सिंधु नदी का दूसरा नाम इंडस भी है। सिंधु घाटी को इंडस वैली भी कहा जाता है, जिसे लैटिन भाषा में इंडिया कहा जाता है। इसलिए अंग्रेजों ने भारत को इंडिया कहना शुरू कर दिया।

ब्रिटिश शासनकाल में भारत को इंडिया बड़े पैमाने पर कहा जाने लगा। धीरे-धीरे उन्होंने अधिकारिक कागजों पर भी इंडिया लिखना शुरू कर दिया। जिसके बाद इंडिया नाम काफी प्रसिद्ध हुआ और हमारे देश को दुनिया में लोग इंडिया के नाम से जानने लगे। असल में सिंधु नदी का इंडस नाम भारत आए विदेशियों ने रखा था। सिंधु सभ्यता की वजह से भारत का पुराना नाम सिंधु भी था। जिसे यूनानी में इंडो या इंडस भी कहा जाता है। लैटिन भाषा में यही शब्द बदलकर इंडिया हो गया। अंग्रेजों को हिन्दुस्तान बोलने में परेशानी होती थी।

रिपोर्ट में यह भी कहा जा रहा है कि जी 20 के निमंत्रण पत्र पर ‘प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ की जगह ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ लिखा गया है। कांग्रेस ने भी ट्वीट कर कहा है कि G-20 सम्मेलन के लिए राष्ट्रपति द्वारा मेहमानों को भेजे गए आमंत्रण पत्र में रिपब्लिक ऑफ ‘इंडिया’ की जगह रिपब्लिक ऑफ ‘भारत’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है।

हालांकि ये कोई नई बात नहीं है कई देश अपना नाम बदल चुके हैं। लेकिन इस चर्चा के बीच देश का नाम भारत कब पड़ा और कैसे पड़ा, ये जानने की उत्सुकता लोगों में बढ़ गई हैं। तो आइए जानें देश का ‘भारत’ नाम कब और क्यों रखा गया था और क्या है इसके पीछे का इतिहास। भारतभूमि को कई नामों से जाना जाता है, लेकिन ‘भारत’ सबसे प्रचलित भारतभूमि को प्राचीनकाल से कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे जम्बूद्वीप, भारतखण्ड, हिमवर्ष, अजनाभवर्ष, भारतवर्ष, आर्यावर्त, हिन्द, हिन्दुस्तान और इंडिया। लेकिन इनमें ‘भारत’ नाम सबसे ज्यादा प्रचलित रहा है।

इसी वजह से भारत नाम, कब, क्यों और कैसे पड़ा, इसको लेकर सबसे ज्यादा धारणाएं और मतभेद है। जितनी वैविध्यपूर्ण भारत की संस्कृति है, उतनी ही ज्यादा इसको अलग-अलग कालखण्डों में अलग-अलग नाम दिए गए हैं। भारत नाम के पीछे ‘भरत’ पौराणिक कहानी पौराणिक युग में भरत नाम के कई व्यक्ति हुए हैं। अलग-अलग वक्त इन महान व्यक्तिों के नाम पर भारत का नाम रखने का दावा किया जाता है। सबसे प्रचलित पौराणिक कहानी की मानें तो, भारतवर्ष नाम ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर पड़ा है। अनेक पुराणों के मुताबिक नाभिराज के पुत्र भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम पर इस देश का नाम ‘भारतवर्ष’ पड़ा है। हिंदू ग्रंथ, स्कन्द पुराण (अध्याय 37) के मुताबिक, नाभिराज के पुत्र थे, ऋषभदेव। और ऋषभ के पुत्र भरत थे और इनके ही नाम पर इस देश का नाम “भारतवर्ष” पड़ा है।

दुष्यन्त-शकुन्तला के पुत्र भरत की भी कहानी प्रचलित ज्यादातौर लोग भारत नाम के पीछे की वजह शकुन्तला और पुरुवंशी राजा दुष्यन्त के पुत्र भरत को मानते हैं। महाभारत के आदिपर्व में इस बात का जिक्र है। . महर्षि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका की बेटी शकुन्तला और राजा दुष्यन्त के बीच गान्धर्व विवाह हुआ था। इन दोनों के पुत्र का नाम भरत हुआ था। बताया जाता है कि भरत के जन्म के बाद ऋषि कण्व ने आशीर्वाद दिया था कि भरत आगे चलकर चक्रवर्ती सम्राट बनेंगे और उनके नाम पर इस भूखण्ड का नाम भारत प्रसिद्ध होगा।

भारत नाम के पीछे की अन्य प्रचलित कहानियां इसी तरह मत्स्यपुराण में जिक्र है कि मनु को प्रजा को जन्म देने वाले वर और उसका भरण-पोषण करने के कारण ‘भरत’ कहा जाता था। इसलिए भूमि के खण्ड पर का शासन-वास था उसे भारतवर्ष कहा गया है। इसके अलावा नाट्यशास्त्र वाले भरतमुनि भी इस नाम के पीछे की वजह हो सकते हैं।

वहीं एक राजर्षी भरत का भी उल्लेख है, जिनके नाम पर जड़भरत मुहावरा ही प्रसिद्ध है। वहीं दशरथपुत्र भरत भी प्रसिद्ध हैं, जिन्होंने अपने बड़े भाई राम के वनवास के बाद गद्दी पर खड़ाऊं रखकर प्रजा की देखभाल की। वहीं मगधराज इन्द्रद्युम्न के दरबार में भी एक भरत ऋषि थे। एक योगी भी भरत हुए हैं। इतना ही नहीं भारत के नामकरण के सूत्र जैन धर्म में भी मिलते हैं। इतना ही नहींमहायुद्ध महाभारत में भी ‘भारत’ शब्द का जिक्र है। इसलिए भारत, को भारत कब से कहा जा रहा है, इसका सटीक इतिहास नहीं है। भरत या भारत शब्द का क्या अर्थ है..? कुछ इतिहासकारों का मानना है कि भारत नाम के पीछे सप्तसैन्धव क्षेत्र में पनपी अग्निहोत्र संस्कृति की पहचान है। वैदिकी में भरत / भरथ का अर्थ, लोकपाल या विश्वरक्षक, जिसे आम तौर पर शासक या राजा कहा जाता है।

वहीं बीबीसी में छपी रिपोर्ट के मुताबिक भाषाविद डॉ. रामविलास शर्मा का कहना है कि, भरत में ‘भर’ शब्द का अर्थ युद्ध और भरण-पोषण होता है। हालांकि उन्होंने ये भी कहा है कि ये अर्थ एक दूसरे से अलग भी हो सकते हैं।

Edited by: sachin lahudkar

अडाणी मामले में 22 आरोपों की जांच पूरी की, पांच देशों से ये जानकारी आने का अभी इंतजार l

Aajtakkhbhar:

Supreme Court:-2023 की शुरुआत में अमेरिकी शॉर्ट सेलर फर्म Hindenburg की ओर से अडानी ग्रुप को लेकर एक रिसर्च रिपोर्ट पब्लिश की गई थी, जिसमें समूह पर 88 गंभीर सवाल उठाए गए थे lसुप्रीम कोर्ट की ओर से मार्केट रेग्युलेटर को अडानी-हिंडनबर्ग मामले में अपनी जांच रिपोर्ट 14 अगस्त 2023 तक सब्मिट करने के लिए कहा गया था, लेकिन

सेबी ने अपनी रिपोर्ट 25 अगस्त को कोर्ट में दाखिल कर दी थी. बता दें कि सेबी की ओर से अडानी समूह के एक्टिविटीज के विभिन्न पहलुओं से संबंधित कुल 24 जांच की जा रही हैं. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई जांच रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है. लेकिन रिपोर्ट्स की मानें तो इन 24 जांचों में से 22 का फाइनल रिजल्ट आ चुका है l

जांच नतीजों का खुलासा नहीं किया गया 

हालांकि सेबी ने इन जांच नतीजों का खुलासा नहीं किया लेकिन उसने संबंधित पक्षों के बीच लेनदेन के साथ जांच में उठाए गए कदमों का विस्तृत ब्योरा दिया है। बाजार नियामक ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “सेबी इस जांच के नतीजों के आधार पर कानून के अनुरूप उचित कार्रवाई करेगा।” यह रिपोर्ट अडाणी समूह की कंपनियों की शेयरों के भाव में हेराफेरी, संबंधित पक्षों के साथ लेनदेन का खुलासा करने में कथित नाकामी और समूह के कुछ शेयरों में भेदिया कारोबार प्रावधानों के उल्लंघन के आरोपों पर अपनी अंतिम राय रखती है। हालांकि विदेशी फर्जी कंपनियों के जरिये अपनी ही कंपनियों में निवेश करके न्यूनतम सार्वजनिक हिस्सेदारी के प्रावधान का उल्लंघन करने के आरोप पर सेबी ने कहा कि इस मामले में 13 विदेशी संस्थाएं शामिल हैं जिनमें 12 विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) और एक विदेशी कंपनी है। इन 13 विदेशी इकाइयों को अडाणी समूह की कंपनियों के सार्वजनिक शेयरधारकों के रूप में वर्गीकृत किया गया था। लेकिन अमेरिकी शोध एवं निवेश कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च की एक रिपोर्ट में इनमें से कुछ इकाइयों को अडाणी समूह के चेयरमैन गौतम अडाणी के बड़े भाई विनोद अडाणी द्वारा संचालित या उनकी सहयोगी बताया गया था।

‘टैक्स हेवन’ देशों से जानकारी जुटाना चुनौती 

सेबी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “इन विदेशी निवेशकों से जुड़ी कई संस्थाओं के ‘टैक्स हेवन’ देशों में स्थित होने से 12 एफपीआई के शेयरधारकों के आर्थिक हित को स्थापित करना एक चुनौती बनी हुई है।” ‘टैक्स हेवन’ के रूप में वे देश शामिल हैं जिसे कर चोरी करने वालों के लिये पनाहगाह माना जाता है। इन देशों में पंजीकृत कंपनियों पर बहुत कम दर से अथवा कोई कर नहीं लगाया जाता है। इस वजह से कई कंपनियां कर से बचने के लिए इन देशों में अपना पंजीकरण कराती रही हैं। बाजार नियामक ने कहा कि इन विदेशी निवेश कंपनियों के असली मालिकों के बारे में पांच देशों से सूचनाएं जुटाने की कोशिशें जारी हैं। ऐसा न होने तक यह जांच रिपोर्ट अंतरिम है। सेबी ने यह भी कहा कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट जारी होने से पहले और उसके बाद में अडाणी समूह के शेयरों में कारोबार से संबंधित एक अंतरिम रिपोर्ट को सक्षम प्राधिकारी ने मंजूरी दे दी है। यह रिपोर्ट 24 अगस्त को स्वीकृत की गई है। सेबी ने कहा कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट के पहले और बाद में अडाणी समूह के शेयरों में हुए कारोबार के संदर्भ में जानकारी जुटाने के लिए विदेशी एजेंसियों एवं इकाइयों से भी संपर्क साधा गया। सेबी ने कहा कि अब भी कुछ सूचनाएं मिलने का इंतजार है। 

हिंडनबर्ग रिसर्च की 24 जनवरी को आई थी 

हिंडनबर्ग रिसर्च की 24 जनवरी को आई एक रिपोर्ट में अडाणी समूह पर शेयरों के भाव में हेराफेरी करने और बहीखाते में धोखाधड़ी के अलावा विदेशी फर्मों के जरिए हस्तक्षेप के आरोप लगाए गए थे। इन आरोपों के बाद समूह की कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में दो महीनों के भीतर 150 अरब डॉलर तक की भारी गिरावट आ गई थी। हालांकि अडाणी समूह ने इन सभी आरोपों को सिरे से नकारते हुए कहा था कि यह रिपोर्ट उसे निशाना बनाने की नीयत से जारी की गई और वह सभी नियामकीय प्रावधानों का पालन करता है। उच्चतम न्यायालय ने बाजार नियामक सेबी को इन आरोपों पर गौर करने और अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने को कहा था। सेबी को अपनी जांच पूरी करने और रिपोर्ट सौंपने के लिए 14 अगस्त की समय सीमा तय की गई थी। नियामक ने जांच पूरी करने के लिए उच्चतम न्यायालय से 15 दिनों की मोहलत मांगी थी। अब सेबी ने अपनी जांच पर एक स्थिति रिपोर्ट पेश कर दी है। इन आरोपों के नियामकीय पहलुओं पर विचार करने के लिए मार्च में एक अलग छह सदस्यीय विशेषज्ञ समिति भी बनायी गयी थी। उस समिति ने मई में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि नियामक अब तक अपनी जांच में किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है l 

Edited By : Sachin Lahudkar

भारत ने वह कर दिखाया, जो दुनिया का कोई देश नहीं कर सका।

Aajtakkhbhar:

 विश्व समुदाय अब भारत को और अधिक तेजी से उभरती हुई महाशक्ति के रूप में देख रहा है। इसरो ने अपने चंद्रयान-3 अभियान को न केवल बहुत कम कीमत में पूरा किया, बल्कि एक तरह से अपने बलबूते ही किया। इसी कारण दुनिया इसरो के साथ भारत का भी गुणगान कर रही है।

प्रधानमंत्री मोदी ने चंद्रयान-3 अभियान के सफल होने पर बधाई देते हुए यह सही कहा कि यह विकसित भारत का शंखनाद है और नए भारत का जयघोष है तथा इसरो की यह सफलता 140 करोड़ देशवासियों को उत्साह एवं उमंग प्रदान करने वाली है। प्रधानमंत्री ने यह भी ठीक ही कहा कि भारत की यह उड़ान चंद्रयान से भी आगे जाएगी और जल्द ही सूर्य के विस्तृत अध्ययन के लिए इसरो आदित्य एल-1 मिशन भी लांच करेगा। इसके बाद सौरमंडल को परखने के लिए दूसरे अभियान भी शुरू किए जाएंगे।

वास्तव में उस क्षण ने भारत में नई ऊर्जा, नए विश्वास और नई चेतना का संचार किया, जिस क्षण चंद्रयान का लैंडर चंद्रमा की सतह पर उतरा। इसे प्रधानमंत्री ने यह कहकर अच्छे से रेखांकित किया कि जब हम अपनी आंखों के सामने इतिहास बनते हुए देखते हैं तो जीवन धन्य हो जाता है और ऐसी ऐतिहासिक घटनाएं जीवन में चिरंजीव चेतना बन जाती हैं।

चंद्रयान-3 अभियान की सफलता से भारतीय विज्ञानियों में जो नई ऊर्जा का संचार हुआ है, उससे अन्य अनेक लोगों और विशेष रूप से तकनीकी विशेषज्ञों और इंजीनियरों को भी प्रेरणा लेनी चाहिए। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि भारत के सामने कई ऐसी चुनौतियां हैं, जो निम्न स्तरीय इंजीनियरिंग के कारण समस्याएं पैदा कर रही हैं। इन समस्याओं से पार पाने की आवश्यकता है।

बाते चाहे आधारभूत ढांचे के निर्माण की हो या शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में किए जाने वाले विकास के कार्यों की, हर जगह सुधार जरूरी है। इसरो ने चंद्रयान-3 अभियान को सफल बनाने के लिए जिस दक्षता का परिचय दिया, वह पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है। इस अभियान की बारीकियों में जाकर उसे सफल बनाने का जैसा काम किया गया, वैसा अन्य क्षेत्रों में भी इसलिए किया जाना चाहिए, क्योंकि कई बार निर्माण कार्यों की गुणवत्ता या फिर उनकी डिजाइन दोयम दर्जे की रहती है।

चंद्रयान-3 की सफलता के पीछे चंद्रयान-2 की असफलता से लिए गए सबक भी हैं। 2019 में जब चंद्रयान-2 अपना अभियान पूरा नहीं कर पाया था, तब देशवासियों को निराशा हुई थी। कुछ देशों के लोगों ने तो इसरो का मजाक उड़ाते हुए यहां तक कहा था कि भारत एक गरीब देश है और उसे पहले अपनी बुनियादी समस्याओं को दूर करना चाहिए। यह भी कहा गया था कि आखिर भारत चांद पर जाने का सपना ही क्यों देख रहा है?

इसरो ने इन सभी आलोचकों के मुंह बंद कर दिए। इन आलोचकों को इस पर ध्यान देना चाहिए कि भारत एक ओर जहां गरीबी से पार पाने की हर संभव कोशिश कर रहा है, वहीं विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में भी अपने कदम तेजी से बढ़ा रहा है। वास्तव में यही वह उपाय है, जिससे वह आत्मनिर्भर बन सकता है। मोदी सरकार ने वर्तमान कालखंड को अमृतकाल का नाम दिया है और यह संकल्प लिया है कि 2047 तक भारत को विकसित देश बनाना है।

कुछ लोग यह सवाल कर सकते हैं कि आखिर चांद के दक्षिणी छोर पर पहुंचकर भारत ने क्या पाया? ऐसे लोगों को पता होना चाहिए कि आने वाले समय में चांद को लेकर की जानी वाली खोज मानवता की भलाई में सहायक होगी। चांद में ऐसे अनेक खनिज और रसायन हो सकते हैं, जिनका दोहन करके समृद्धि की ओर बढ़ा जा सकता है। चांद को लेकर किए जाने वाले शोध यह बताने में भी सहायक होंगे कि सौरमंडल कैसे बना और विकसित हुआ? इसके अतिरिक्त इसका भी आकलन हो सकता है कि वहां इंसानों को बसाया जा सकता है या नहीं? यही कारण रहा कि प्रधानमंत्री ने चंद्रयान की सफलता को समस्त मानवता की कामयाबी करार दिया।

इस समय जहां इसरो की सफलता का डंका बज रहा है, वहीं भारत के रक्षा उद्योग के साथ सूचना एवं संचार तकनीक क्षेत्र भी आगे बढ़ रहे हैं। इसी तरह फार्मा क्षेत्र भी दुनिया में अपना नाम कमा रहा है। अब कोशिश यह होनी चाहिए कि भारत के सभी शोध-अनुसंधान एवं निर्माण संस्थान अपने कार्यों में वैसी ही उत्कृष्टता हासिल करें, जैसी इसरो ने अंतरिक्ष विज्ञान में प्राप्त कर ली है। चूंकि कोई भी देश अपने संस्थानों के माध्यम से ही विकसित बनने के साथ ही समृद्धि हासिल करता है, इसलिए सरकार को विभिन्न संस्थाओं को उत्कृष्ट शोध एवं अनुसंधान के लिए प्रेरित करना चाहिए और उन्हें पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए।

यह ठीक है कि मोदी सरकार इस दिशा में सक्रिय है, लेकिन देश के विभिन्न संस्थानों को विश्व स्तरीय तभी बनाया जा सकता है, जब उन्हें धन के अभाव का सामना न करना पड़े। भारत को एक विकसित देश बनने के लिए अभी एक लंबा सफर तय करना है। इस सफर को तभी आसान बनाकर नए भारत की नई कहानी लिखी जा सकती हैl

Edited By : Sachin Lahudkar

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोगों से 13 से 15 अगस्त के बीच हर घर तिरंगा अभियान में भाग लेने का आग्रह किया।

Aajtakkhabhar: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को लोगों से 13 से 15 अगस्त के बीच हर घर तिरंगा अभियान में भाग लेने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि तिरंगा स्वतंत्रता की भावना और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। 

हर घर तिरंगा’ अभियान ने आजादी के अमृत महोत्सव में एक नई ऊर्जा भरी है। देशवासियों को इस साल इस अभियान को एक नई ऊंचाई पर ले जाना है।

मैं आप सभी से 13 से 15 अगस्त के बीच हर घर तिरंगा आंदोलन में भाग लें और अपने फोटो इंटरनेट मीडिया पर साझा करे।

हर घर तिरंगा’ अभियान ने आजादी के अमृत महोत्सव में एक नई ऊर्जा भरी है। देशवासियों को इस साल इस अभियान को एक नई ऊंचाई पर ले जाना है।

Edited By : Sakshi wadekar