अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की एंट्री ने गुजरात चुनाव त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया है।

अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की एंट्री ने गुजरात चुनाव त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया है।

By Aajtakkhabar Admin 1 December 2022

Aajtakkhabar:पिछले 27 सालों से गुजरात में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार है। गुजरात में भाजपा की नजरें रिकार्ड सातवें कार्यकाल पर टिकी हुई हैं। वहीं, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की एंट्री ने गुजरात चुनाव त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया है।

गुजरात के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के अनुसार, पहले चरण में दक्षिण गुजरात और कच्छ-सौराष्ट्र क्षेत्र के 19 जिलों में 788 उम्मीदवार मैदान में हैं। इन उम्मीदवारों में 70 महिलाएं और 339 निर्दलीय हैं। 89 सीटों में से 14 अनुसूचित जनजाति और सात दलितों के लिए आरक्षित हैं। मतदान सुबह आठ बजे होगा और शाम साढ़े पांच बजे तक चलेगा। पहले चरण के तहत विधानसभा क्षेत्रों में कुल 2,39,76,670 मतदाता रजिस्टर्ड हैं। इसमें 1,24,33,362 पुरुष, 1,15,42,811 महिला और 497 थर्ड जेंडर मतदाता शामिल हैं।

PM Modi ने की रिकॉर्ड वोटिंग की अपील

पीएम मोदी ने गुजरात में पहले चरण का मतदान शुरू होने से पहले ट्वीट किया है। पीएम ने लिखा, आज गुजरात में पहले चरण का मतदान है। मैं आज मतदान करने वाले सभी लोगों, विशेष रूप से पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं से रिकॉर्ड संख्या में अपने मताधिकार का प्रयोग करने की अपील करता हूं।

पहले चरण के मतदान के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

पहले चरण के मतदान के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

गुजरात में पहले चरण के मतदान के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। गुजरात के DGP आशीष भाटिया ने बताया कि इसके लिए अतिरिक्त बल तैनात किए गए हैं, अर्धसैनिक बल भी तैनात हैं। लोग बिना किसी डर के मतदान कर सकें इसके लिए सभी इंतजाम किए गए हैं।

एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, इस सूची में 61 उम्मीदवारों के साथ आम आदमी पार्टी सबसे ऊपर है.

2017 के गुजरात विधानसभा चुनावों में आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों की कुल संख्या 238 थी.

राज्य में विधानसभा चुनाव दो चरणों में हो रहे हैं. दोनों चरणों के उम्मीदवारों के सर्वेक्षण के बाद एडीआर द्वारा सोमवार को जारी रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस के 60 और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 32 उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं.

एडीआर ने गुजरात में एक और पांच दिसंबर को होने वाले दो चरणों के चुनाव के लिए सभी 1,621 उम्मीदवारों के हलफनामों के विश्लेषण का हवाला देते हुए कहा कि हत्या, बलात्कार और हत्या के प्रयास से संबंधित गंभीर अपराधों के लिए कुल 192 उम्मीदवारों पर मामले दर्ज हैं, जिसमें कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी (आप) के 96 उम्मीदवार शामिल हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, गंभीर अपराधों वाले उम्मीदवारों के मामले में ‘आप’ 43 उम्मीदवारों के साथ सूची में सबसे ऊपर है जबकि कांग्रेस के 28 और भाजपा के 25 ऐसे उम्मीदवार मैदान में हैं.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, एडीआर विश्लेषण से पता चलता है कि आपराधिक मामलों वाले 330 उम्मीदवारों में पहले चरण की 89 सीटों पर चुनाव लड़ रहे 788 उम्मीदवारों में से 167 और दूसरे चरण की 93 सीटों पर कुल 822 उम्मीदवारों में से 163 शामिल हैं.

राज्य के कुल 182 सदस्यीय विधानसभा के लिए चुनाव में आप, कांग्रेस और भाजपा के क्रमशः 181, 179 और 182 उम्मीदवार हैं.

एडीआर ने कहा कि यह ‘गंभीर अपराधों’ को गैर-जमानती अपराधों के रूप में परिभाषित करता है, जिसमें अधिकतम पांच साल या उससे अधिक की सजा हो सकती है. इनमें मारपीट, हत्या, अपहरण और बलात्कार के साथ-साथ महिलाओं के खिलाफ अपराध और भ्रष्टाचार के मामले शामिल हैं.

महिलाओं के खिलाफ अपराधों से जुड़े मामलों में 18 उम्मीदवारों का नाम है, जबकि एक उम्मीदवार पर बलात्कार का आरोप है. पांच के खिलाफ हत्या का आरोप है और 20 पर हत्या के प्रयास का आरोप है.

अहमदाबाद जिले की दसक्रोई सीट से आप के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं किरण पटेल के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज है. पाटन सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार किरीट पटेल पर हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया है, जबकि पंचमहल जिले की शेहरा सीट से चुनाव लड़ रहे भाजपा के जेठा भारवाड़ पर बलात्कार, अपहरण, जबरन वसूली, महिला का शील भंग करने और अन्य आरोप हैं.

एडीआर ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि उम्मीदवारों के चयन में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का राजनीतिक दलों पर कोई असर नहीं पड़ा है.

ज्ञात हो कि शीर्ष अदालत ने 13 फरवरी, 2020 को विशेष रूप से राजनीतिक दलों को निर्देश दिया था कि वे इस तरह के चयन के कारण बताएं और बिना आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अन्य व्यक्तियों को उम्मीदवारों के रूप में क्यों नहीं चुना जा सकता है. इन अनिवार्य दिशानिर्देशों के अनुसार, इस तरह के चयन का कारण संबंधित उम्मीदवार की योग्यता, उपलब्धियों और योग्यता के संदर्भ में होना चाहिए.

एडीआर ने कहा, ‘2022 में छह राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान यह देखा गया कि राजनीतिक दलों ने व्यक्ति की लोकप्रियता, अच्छे सामाजिक कार्य, मामले राजनीति से प्रेरित होने आदि जैसे निराधार कारण दिए.’

एडीआर ने कहा, ‘दागी पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के ये ठोस कारण नहीं हैं. यह डेटा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि राजनीतिक दलों को चुनावी प्रणाली में सुधार करने में कोई दिलचस्पी नहीं है और हमारा लोकतंत्र कानून तोड़ने वालों के हाथों पीड़ित रहेगा, जो कानून निर्माता बन जाते हैं.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

Edited by: Sachin Lahudkar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related News

लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण में 1 जून को मतदान संपन्न हुआ। भारत में एग्जिट पोल की शुरुआत 80 के दशक में हुई थी l

लोकसभा चुनाव 2024 के सातवें और अंतिम चरण के लिए आज वोटिंग हो रही है। आज मतदान पूरी होने के बाद एग्जिट पोल 2024 के परिणाम आना शुरू हो जाएंगे। ऐसा माना जाता है कि एग्जिट पोल से चुनाव परिणाम की तस्वीर साफ हो जाती है कि किस पार्टी को जनादेश मिल रहा है और कौन केंद्र की सत्ता पर काबिज होने वाला है?

भारत में एग्जिट पोल की शुरुआत 80 के दशक में हुई थी और तब से हर बार सर्वे के आधार पर अंदाजा लगा लिया जाता है

कि किसे बहुमत मिल रहा है और किसी नहीं। लेकिन कभी-कभी एग्जिट पोल सही तो कभी-कभी पूरी तरह फेल हो जाते हैं। आइए जानते हैं पिछले चार लोकसभा चुनाव के एग्जिट पोल में कौन हुआ पास और कौन रहा फेल वर्ष 2004 में सभी एजेंसियों ने ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा देने वाली एनडीए को पूर्ण बहुमत का अनुमान लगाया था। लेकिन जब रिजल्ट आया तो एनडीए 200 सीटें भी नहीं मिली थी। इस दौरान लगभग ज्यादातर एग्जिट पोल गलत साबित हुए थे।

वहीं यूपीए ने इस चुनाव में 222 सीटें हासिल कर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के सहयोग से सत्ता हासिल की थी। एग्जिट पोल ने भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की निर्णायक जीत का पूर्वानुमान लगाया था और 240 से ज़्यादा सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई थी। जबकि रिजल्ट में भाजपा को केवल 187 सीटें मिली, जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगी 216 सीटें जीतने में सफल रहे।

सी-वोटर्स ने एनडीए को 263-275 मिलने का अनुमान लगाया था, जबकि यूपीए को 174-186 मिलने की भविष्यवाणी की थी।

वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों में भी सर्वे करवाने वाली एजेंसियों के दावे अधिकतर फेल साबित हुए थे। एग्जिट पोल के अनुसार, 2009 चुनाव में यूपीए को 199 और एनडीए को 197 सीटें मिल सकती हैं, लेकिन रिजल्ट में यूपीए को 262 सीटें मिली थीं और एनडीए 159 सीट पर ही सिमट गई थी।

ज्यादातर एग्जिट पोल में कहा गया था कि कांग्रेस वापसी नहीं करेगी, लेकिन चुनाव के परिणाम आए और कांग्रेस ने फिर सरकार बनाई। लोकसभा चुनाव 2009 के परिणाम में कांग्रेस को 206 और भाजपा को 116 सीटें मिली थीं। सी-वोटर्स ने एनडीए को 189 मिलने का अनुमान लगाया था, जबकि यूपीए को 195 मिलने की भविष्यवाणी की थी।2014 के लोकसभा चुनाव में कुछ एग्जिट पोल के दावे सही साबित हुए थे। लेकिन एक एजेंसी के अलावा किसी ने यह दावा नहीं किया था कि भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलेगा।

सर्वे एजेंसी ने दावा किया था कि एनडीए, 10 साल से सत्तारूढ़ कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने में सफल होगी।

उस वक्त एग्जिट पोल में कांग्रेस को करीब 100 सीट मिलने का दावा किया गया था। लेकिन जब रिजल्ट आया तो कांग्रेस 44 पर सिमट गई। वहीं भाजपा को अनुमान से अधिक 282 और एनडीए को 336 सीटें मिलीं थीं। न्यूज 24-चाणक्य ने एनडीए को 340 मिलने का अनुमान लगाया था, जबकि यूपीए को 70 मिलने की भविष्यवाणी की थी।2019 के लोकसभा चुनावों में अधिकतर एग्जिट पोल के अनुमान सही साबित हुए थे।

ज्यादातर एजेंसियों ने भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन की जीत की भविष्यवाणी की थी। लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों पर अधिकतर एग्जिट पोल के आंकड़े सही साबित हुए थे। लोकसभा चुनाव 2019 के परिणामों में एनडीए को 543 में से 353 सीटें मिली थी। इसमें से भाजपा ने अकेले 303 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं 2019 में कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूपीए केवल 91 सीटें जीतने में कामयाब हो पाया था। न्यूज 24-चाणक्य ने एनडीए को 350 मिलने का अनुमान लगाया था, जबकि यूपीए को 95 मिलने की भविष्यवाणी की थी।

लोकसभा चुनाव 2024 के सातवें चरण की वोटिंग शाम सात बजे समाप्त हो जाएगी।

वोटिंग खत्म होते ही एग्जिट पोल 2024 के परिणाम आना शुरू हो जाएंगे। लोकसभा चुनाव के अलावा आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम में विधानसभा चुनाव हुए हैं। एग्जिट पोल, मतदान के बाद मतदान केंद्र से बाहर निकलते समय मतदाताओं द्वारा कही गई बातों पर आधारित पूर्वानुमान होते हैं। एक्सिस माई इंडिया, टुडेज चाणक्य, आईपीएसओएस, सीवोटर, सीएसडीएस जैसी एजेंसियां ​​एग्जिट पोल करती हैं।

Edited By- Sachin Lahudkar

देश में एक राष्ट्र, एक चुनाव को लेकर बहस छिड़ी हुई है। इस मामले पर पक्ष और विपक्ष आमने-सामने हैं

 एक तरफ जहां मोदी सरकार का कहना है कि चुनाव के खर्च में कमी करने के लिए यह कदम बेहद जरूरी है। वहीं, विपक्षी दलों का मानना है कि इससे संघीय ढांचा कमजोर होगा।क्या वाकई लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराने से देश को आर्थिक फायदा होगा? एक रिपोर्ट के जरिए इस सवाल का जवाब दिया गया है।पंचायत से लेकर लोकसभा तक के चुनाव एक साथ कराने से ही चुनाव खर्च कम नहीं हो जाएगा, इसके लिए जरूरी है कि सारे चुनाव एक सप्ताह के अंदर कराए जाएं। अगर ऐसा होता है तो चुनाव पर आने वाले खर्च को घटा कर एक तिहाई किया जा सकता।

एक अध्ययन के अनुसार, स्थानीय चुनाव से लेकर लोकसभा तक सारे चुनाव एक साथ कराने पर 10 लाख करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है, लेकिन अगर सभी चुनाव एक हफ्ते के अंदर कराए जाएं तो ये खर्च घट कर तीन से पांच लाख करोड़ रुपये तक आ सकता है। पंचायत से लेकर लोकसभा के चुनाव एक साथ कराने पर ₹10 लाख करोड़ खर्च होने का अनुमान है।

साल 2019 के लोकसभा चुनावों में 60,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। लोकसभा चुनाव 2024 पर ₹1.20 लाख करोड़ खर्च होने का अनुमान है। 

विधानसभा सीटों पर खर्च 

देश में 4,500 विधानसभा सीटें है अगर साथ कराए जाए तो इस पर तीन लाख करोड़ रुपये खर्च हो सकते हैं।

स्थानीय निकाय चुनाव पर खर्च 

देश में 2.5 लाख ग्राम पंचायते हैं। 650 जिला परिषद, 7,000 मंडल, 2 लाख 50 हजार ग्राम पंचायत सीटों के चुनाव पर 4.30 लाख करोड़ रुपये खर्च हो सकते है। देश में हैं 500 नगरपालिका हैं। सभी सीटो पर चुनाव एक साथ कराने पर 1 लाख करोड़ रुपये खर्च का अनुमान है।मौजूदा तौर-तरीके, पोल पैनल कितना असरदार है और राजनीतिक दलों की ओर से चुनाव आचार संहिता का कड़ाई से पालन, ये सभी चीजें खर्च घटाने में अहम भूमिका निभाएंगी।अध्ययन के मुताबिक, अगर चुनाव को कई चरणों मे न कराया जाए तो इससे चुनाव पर खर्च कम हो सकता है, क्योकि विज्ञापन और यात्राओं पर कम खर्च होगा।

Edited by; sachin lahudkar

कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस सांसद के भाषण के कुछ हिस्सों को संसद टीवी ने काट दिए।

Aajtakkhabhar:एएनआई। गुरुवार को कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि राहुल गांधी ने संसद में कोई असंसदीय शब्दों का इस्मेमाल नहीं किया।

अधीर रंजन चौधरी ने आगे कहा कि मैंने इस मुद्दे को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के समक्ष उठाया है।एनडीए सरकार के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में बुधवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी बात रखी।

हालांकि, मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने कई ऐसी बातें भी कही, जिसपर भाजपा सासंदों ने आपत्ति जाहिर की।

लोकसभा में  के भाषण के बाद कांग्रेस राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस सांसद के भाषण के कुछ हिस्सों को संसद टीवी ने काट दिए। गुरुवार को कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि राहुल गांधी ने संसद में कोई असंसदीय शब्दों का इस्मेमाल नहीं किया।

कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा,”राहुल गांधी ने किसी असंसदीय शब्द का इस्तेमाल किया है…राहुल गांधी ने कहा कि भारत माता को अपमानित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ‘भारत माता’ कहना हर नागरिक का अधिकार है।

अधीर रंजन चौधरी ने आगे कहा कि मैंने इस मुद्दे को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के समक्ष उठाया है। उन्होंने मुझे आश्वासन दिया है कि वह इस पर गौर करेंगे।

शशि थरूर ने दी अपनी प्रतिक्रिया 

वहीं, इस मामले पर कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, ‘भारत माता की हत्या’ (कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के भाषण से) आदि जैसे हटा हटा दिया गया है, जो गलत है।

‘ लोकतंत्र की हत्या’ शब्द का उपयोग रूपक है। ‘ लोकतंत्र की हत्या’ मतलब है कि भारत के विचार को नष्ट किया जा रहा है।

संसद टीवी स्पीकर के नियंत्रण में नहीं: प्रह्लाद जोशी

राहुल गांधी के भाषण के कुछ हिस्सों को संसद टीवी द्वारा काटे जाने को लेकर केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा,”संसद टीवी स्पीकर के नियंत्रण में नहीं है और हमारे नियंत्रण में भी नहीं है। इसलिए हमें नहीं पता कि क्या हुआ। अगर कुछ भी असंसदीय कहा जाता है तो उसे हटा दिया जाता है और यह एक पुरानी प्रथा रही है।

Edited By : Sachin Lahudkar

जनवरी से शुरू होगा और 6 अप्रैल तक चलेगा संसद का बजट। इस दौरान 66 दिनों में 27 बैठकें होंगी।

Aajtakkhabar:केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने यह जानकारी दी। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि अवकाश 14 फरवरी से 12 मार्च तक रहेगा। बता दें, संसद का शीतकालीन सत्र 7 दिसंबर 2022 से लेकर 29 दिसंबर 2022 तक चलना था, लेकिन सदन में हंगामे के चलते बाद में इसे छोटा कर दिया गया।

संसद का बजट सत्र 2023, 31 जनवरी से शुरू होकर 6 अप्रैल तक चलेगा,

केंद्रीय मंत्री ने अपने ट्वीट में कहा, ”संसद का बजट सत्र 2023, 31 जनवरी से शुरू होकर 6 अप्रैल तक चलेगा, जिसमें 27 बैठकें 66 दिनों में सामान्य अवकाश के साथ होंगी। अमृत काल के बीच राष्ट्रपति के अभिभाषण, केंद्रीय बजट और अन्य मदों पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा की प्रतीक्षा है।”प्रह्लाद जोशी ने बताया कि 14 फरवरी से 12 मार्च तक अवकाश रहेगा। उन्होंने कहा, “बजट सत्र, 2023 के दौरान अवकाश 14 फरवरी से 12 मार्च तक रहेगा, ताकि विभाग संबंधित संसदीय स्थायी समितियां अनुदान मांगों की जांच कर सकें और अपने मंत्रालयों/विभागों से संबंधित रिपोर्ट तैयार कर सकें।”

संसद के शीतकालीन सत्र को समय से पहले समाप्त कर दिया गया।

 संसद का शीतकालीन सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया। तवांग मामले पर राज्यसभा में 17 विपक्षी दलों ने वाक आउट कर दिया। इस मामले पर विपक्ष के नेता और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने विपक्षी दलों की बैठक भी बुलाई थी। इसके साथ ही, खरगे के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर दिए गए विवादित बयान पर भी संसद में काफी हंगामा देखने को मिला। यही वजह रही कि संसद के शीतकालीन सत्र को समय से पहले समाप्त कर दिया गया।

Edited By: Sachin Lahudkar

सोनिया गांधी द्वारा आरोप लगाया कि केंद्र सरकार सुनियोजित ढंग से न्यायपालिका के प्राधिकार को कमजोर करने का प्रयास कर रही हैl

Aajtakkhabar:नई दिल्ली, एजेंसी। न्यायापालिका और सरकार के संबंध में संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी के बयान को पूरी तरह से अनुचित बताते हुए राजनीतिक दलों के नेताओं से आग्रह किया कि वे उच्च संवैधानिक पदों पर आसीन लोगों पर पक्षपात करने का आरोप नहीं लगाएं।

धनखड़ ने कहा कि संप्रग अध्यक्ष का बयान उनके विचारों से पूरी तरह से भिन्न है और न्यायपालिका को कमतर करना उनकी सोच से परे है। सभापति ने कहा कि संप्रग अध्यक्ष का बयान पूरी तरह अनुचित है और लोकतंत्र में उनके विश्वास की कमी का संकेत देता है।

पार्टी संसदीय दल की बैठक में आरोप लगाया कि केंद्र सरकार सुनियोजित ढंग से न्यायपालिका के प्राधिकार को कमजोर करने का प्रयास कर रही है, जो बहुत ही परेशान करने वाला घटनाक्रम है।

संप्रग अध्यक्ष ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह जनता की नजर में न्यायपालिका की स्थिति को कमतर बनाने का प्रयास कर रही है। धनखड़ ने उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया से संबंधित राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJC) कानून को रद्द किए जाने को लेकर पिछले दिनों न्यायपालिका की आलोचना की थी और इसे ‘संसदीय संप्रभुता से समझौते’ का उदाहरण बताया था।

किरन रिजिजू ने भी कोर्ट की व्यवस्था पर उठाया था सवाल 

Credit-ANI

बता दें कि कुछ दिनों पहले केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू ने अदालतों में मुकदमो के बढ़ते ढेर को निपटाने के प्रयास और न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित सवाल का जवाब देते हुए राज्यसभा में कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर जबतक हम नयी व्यवस्था खड़ी नहीं करेंगे, तबतक न्यायाधीशों की रिक्तियों का मुद्दा और नियुक्तियों का सवाल उठता ही रहेगा।कानून मंत्री इतने पर ही नहीं रुके उन्होंने एनजेएसी के लागू न हो पाने की ओर इशारा करते हुए आगे कहा मुझे यह कहते हुए अच्छा नहीं लग रहा है, लेकिन यह बात सही है कि इस देश की या इस सदन की जो भावना रखी गई थी, उसके मुताबिक हमारे पास व्यवस्था नहीं बनी है।

Edited By: Sachin Lahudkar

गुजरात में भाजपा ने 156 सीटों के साथ बंपर जीत दर्ज की तो हिमाचल में कांग्रेस को 40 सीटें मिली। 

Aajtakkhabar:चुनावी परिणाम इन पार्टियों के बड़े के लिए खास महत्व रखते हैं। आइए जानें आखिर गुजरात और हिमाचल चुनाव नतीजों के 5 बड़े नेताओं पर क्या है मायने..इस जीत ने यह साबित कर दिया है कि गुजरात की जनता अभी तक मोदी को काफी पसंद करती है।

दूसरी ओर इस चुनाव ने साबित कर दिया है कि पीएम मोदी का चुनावी भाषण का असर और पीएम का गुजरात की जनता से जुड़ाव कम नहीं हुआ है। गुजरात में भाजपा की कई प्रदेश स्तर की नाकामियों को पीएम की रैलियों ने भुला दिया।

गुजरात में कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है तो हिमाचल में एक बार फिर बदलाव के साथ उनकी सरकार बनने जा रही है। हिमाचल में जीत के बावजूद इसका श्रेय कांग्रेस की प्रदेश इकाई को जाता है न की राहुल गांधी को। राहुल समेत कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने गुजरात से दूरी बनाई रखी, जिसके चलते उसे बड़ा नुकसान भी झेलना पड़ा। राहुल ने केवल भारत जोड़ो यात्रा पर फोकस रखा, लेकिन इसका भी फायदा उनको चुनावों में मिलता हुआ नहीं दिख रहा है।

नड्डा की अध्यक्षता में ही भाजपा ने गुजरात में प्रचंड जीत पाई, लेकिन अपने गृह क्षेत्र हिमाचल में नड्डा पार्टी को जीत नहीं दिला सके। जेपी नड्डा ने खुद हिमाचल में कई रैलियां की थी, जिसका असर इस रूप में दिखा कि प्रदेश में भाजपा का जनाधार कमजोर नहीं हुआ, भाजपा की सीटें तो घटीं पर कांग्रेस के मुकाबले केवल एक फीसद कम वोट शेयर मिला। नड्डा एक कमजोर मुख्यमंत्री और सत्ता विरोधी लहर से उत्पन्न नुकसान को दूर करने में असमर्थ रहे। 

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को गुजरात में बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा है। नेहरू-गांधी परिवार के सबसे वफादार माने जाने वाले खरगे को खुद का बयान ही नुकसान पहुंचा गया। पीएम मोदी की तुलना रावण से करने से कांग्रेस पार्टी को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा। दूसरी ओर हिमाचल में जीत भी उनकी अध्यक्षता में हुई है, लेकिन अब उन्हें अपने नेताओं को बनाए रखने और पांच साल तक सरकार चलाने में उनकी मदद करनी होगी। 

Credit- Inida today

अरविंद केजरीवाल के लिए गुजरात और हिमाचल चुनाव में कुछ भी खोने के लिए नहीं था। अन्ना आंदोलन से पैदा हुई केजरीवाल की पार्टी गुजरात की जनता का विश्वास तो नहीं जीत पाई लेकिन गुजरात में उसकी बड़ी एंट्री हुई है। गुजरात में 5 सीटों के साथ 10 फीसद से अधिक वोट शेयर पाना भी केजरीवाल के लिए बड़ी उपलब्धि है। इसी के साथ उनकी पार्टी अब राष्ट्रीय पार्टी भी बन गई है।

Edited By:Sachin Lahudkar