कोर्ट पंजाब सरकार को फटकार लगाई है। कोर्ट ने राज्य में अवैध शराब के बड़े पैमाने पर निर्माण और बिक्री पर नाराजगी जताई है। 

कोर्ट पंजाब सरकार को फटकार लगाई है। कोर्ट ने राज्य में अवैध शराब के बड़े पैमाने पर निर्माण और बिक्री पर नाराजगी जताई है। 

By Aajtakkhabar Admin 5 December 2022

Aajtakkhabar;एजेंसी। पंजाब सरकार को राज्य में अवैध शराब के बड़े पैमाने पर निर्माण और बिक्री पर फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि पंजाब में ड्रग्स और शराब की समस्या एक गंभीर मुद्दा है।

कोर्ट ने सरकार से नाराजगी जताते हुए कहा कि पंजाब सरकार केवल FIR दर्ज कर रही है और आगे की कार्रवाई कुछ नहीं कर रही है।

कोर्ट ने सरकार से अवैध शराब बनाने के खतरे को रोकने के लिए उठाए गए विशिष्ट कदमों की सूची भी बनाने को कही। कोर्ट ने इसके बाद  सीमा सुरक्षा का भी मुद्दा उठाया। कोर्ट ने कहा कि पंजाब एक सीमावर्ती राज्य है और अगर कोई देश को खत्म करना चाहेगा, तो वह सीमाओं से इसकी शुरुआत करेगा।

Edited By: Sachin Lahudkar

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लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण में 1 जून को मतदान संपन्न हुआ। भारत में एग्जिट पोल की शुरुआत 80 के दशक में हुई थी l

लोकसभा चुनाव 2024 के सातवें और अंतिम चरण के लिए आज वोटिंग हो रही है। आज मतदान पूरी होने के बाद एग्जिट पोल 2024 के परिणाम आना शुरू हो जाएंगे। ऐसा माना जाता है कि एग्जिट पोल से चुनाव परिणाम की तस्वीर साफ हो जाती है कि किस पार्टी को जनादेश मिल रहा है और कौन केंद्र की सत्ता पर काबिज होने वाला है?

भारत में एग्जिट पोल की शुरुआत 80 के दशक में हुई थी और तब से हर बार सर्वे के आधार पर अंदाजा लगा लिया जाता है

कि किसे बहुमत मिल रहा है और किसी नहीं। लेकिन कभी-कभी एग्जिट पोल सही तो कभी-कभी पूरी तरह फेल हो जाते हैं। आइए जानते हैं पिछले चार लोकसभा चुनाव के एग्जिट पोल में कौन हुआ पास और कौन रहा फेल वर्ष 2004 में सभी एजेंसियों ने ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा देने वाली एनडीए को पूर्ण बहुमत का अनुमान लगाया था। लेकिन जब रिजल्ट आया तो एनडीए 200 सीटें भी नहीं मिली थी। इस दौरान लगभग ज्यादातर एग्जिट पोल गलत साबित हुए थे।

वहीं यूपीए ने इस चुनाव में 222 सीटें हासिल कर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के सहयोग से सत्ता हासिल की थी। एग्जिट पोल ने भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की निर्णायक जीत का पूर्वानुमान लगाया था और 240 से ज़्यादा सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई थी। जबकि रिजल्ट में भाजपा को केवल 187 सीटें मिली, जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगी 216 सीटें जीतने में सफल रहे।

सी-वोटर्स ने एनडीए को 263-275 मिलने का अनुमान लगाया था, जबकि यूपीए को 174-186 मिलने की भविष्यवाणी की थी।

वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों में भी सर्वे करवाने वाली एजेंसियों के दावे अधिकतर फेल साबित हुए थे। एग्जिट पोल के अनुसार, 2009 चुनाव में यूपीए को 199 और एनडीए को 197 सीटें मिल सकती हैं, लेकिन रिजल्ट में यूपीए को 262 सीटें मिली थीं और एनडीए 159 सीट पर ही सिमट गई थी।

ज्यादातर एग्जिट पोल में कहा गया था कि कांग्रेस वापसी नहीं करेगी, लेकिन चुनाव के परिणाम आए और कांग्रेस ने फिर सरकार बनाई। लोकसभा चुनाव 2009 के परिणाम में कांग्रेस को 206 और भाजपा को 116 सीटें मिली थीं। सी-वोटर्स ने एनडीए को 189 मिलने का अनुमान लगाया था, जबकि यूपीए को 195 मिलने की भविष्यवाणी की थी।2014 के लोकसभा चुनाव में कुछ एग्जिट पोल के दावे सही साबित हुए थे। लेकिन एक एजेंसी के अलावा किसी ने यह दावा नहीं किया था कि भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलेगा।

सर्वे एजेंसी ने दावा किया था कि एनडीए, 10 साल से सत्तारूढ़ कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने में सफल होगी।

उस वक्त एग्जिट पोल में कांग्रेस को करीब 100 सीट मिलने का दावा किया गया था। लेकिन जब रिजल्ट आया तो कांग्रेस 44 पर सिमट गई। वहीं भाजपा को अनुमान से अधिक 282 और एनडीए को 336 सीटें मिलीं थीं। न्यूज 24-चाणक्य ने एनडीए को 340 मिलने का अनुमान लगाया था, जबकि यूपीए को 70 मिलने की भविष्यवाणी की थी।2019 के लोकसभा चुनावों में अधिकतर एग्जिट पोल के अनुमान सही साबित हुए थे।

ज्यादातर एजेंसियों ने भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन की जीत की भविष्यवाणी की थी। लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों पर अधिकतर एग्जिट पोल के आंकड़े सही साबित हुए थे। लोकसभा चुनाव 2019 के परिणामों में एनडीए को 543 में से 353 सीटें मिली थी। इसमें से भाजपा ने अकेले 303 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं 2019 में कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूपीए केवल 91 सीटें जीतने में कामयाब हो पाया था। न्यूज 24-चाणक्य ने एनडीए को 350 मिलने का अनुमान लगाया था, जबकि यूपीए को 95 मिलने की भविष्यवाणी की थी।

लोकसभा चुनाव 2024 के सातवें चरण की वोटिंग शाम सात बजे समाप्त हो जाएगी।

वोटिंग खत्म होते ही एग्जिट पोल 2024 के परिणाम आना शुरू हो जाएंगे। लोकसभा चुनाव के अलावा आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम में विधानसभा चुनाव हुए हैं। एग्जिट पोल, मतदान के बाद मतदान केंद्र से बाहर निकलते समय मतदाताओं द्वारा कही गई बातों पर आधारित पूर्वानुमान होते हैं। एक्सिस माई इंडिया, टुडेज चाणक्य, आईपीएसओएस, सीवोटर, सीएसडीएस जैसी एजेंसियां ​​एग्जिट पोल करती हैं।

Edited By- Sachin Lahudkar

‘ज्युबिली’ पर मराठी निर्देशक ने लगाया कथा की चोरी का आरोप…

एमेजॉन प्राइम वीडियो पे रिलीज हुई बहुचर्चित “ज्यूबिली” (Jubilee) सीरिज पे कथा की चोरी का आरोप मराठी निर्देशक नागनाथ खरात ने लगाया है और लीगल नोटिस भेजकर डैमेज के तौर पर ५ करोड़ और ओरिजनल स्टोरी के क्रेडिट की मांग की हैं। ज्यूबीली ये सीरिज विक्रमादित्य मोटवानी ( Vikramaditya Motewane ) ने निर्देशित किया हैं और उसे अतुल सभरवाल को लेखक का क्रेडिट दिया गया हैं । विक्रमादित्य मोटवाने Bollywood के जाने माने फिल्म निर्देशन हैं। Sacred Games जैसी सीरिज और उड़ान, लुटेरा जैसी फिल्में बनाई हैं।

कौन हैं नागनाथ खरात?

नागनाथ खरात एक इंडिपेंडेंट मराठी निर्देशक और कवि हैं। उनकी पहली शॉर्ट फिल्म दीसाड दिस ( Day After Day, 2016 ) को इंटरनेशनल अवॉर्ड मिले हैं। उनकी पहली फीचर फिल्म नागास्टाइल (Nagastyle, 2020) का वर्ल्ड प्रिमियर झेक रिपब्लिक में हुआ था। फिलहाल वो फिल्म अभी तक रिलीज नहीं हुई हैं। जब वो १९ साल के थे तब उनका पहला मराठी कविता संग्रह ” ” जांभूलाच्या कविता “ ( Around the Nature ) प्रकाशित हुआ था।


क्या हैं विवाद का कारण?


28 साल के मराठी निर्देशक नागनाथ खरात का कहना है कि उनकी “बरसात के दिन” इस कथा को चोरी करके ये सीरीज बनाई हुई हैं| जो की Screen Writes Association (SWA) में जनवरी २०१८ में कॉपीराइट किया हुआ था |
नागनाथ का कहना हैं कि २०१८ में हुई “सिनेस्तान इंडिया” की स्क्रीप राइटिंग स्पर्धा में उन्होंने हिस्सा लिया था| ( जिसका प्रमोशन फिल्म ऐक्टर अमीर खान ने भी किया था | ) इस कथा की चोरी यहां से होने की ज्यादा संभावना है|


क्या है “बरसात के दिन” और ” ज्यूबिलि” में समानता l


नागनाथ खरात का कहना हैं कि जुबिली की पूरी कहानी उनके कथा पर आधारित हैं| इतना ही नहीं Jubilee के एपीसोड पांच का नाम हैं ” बरसात की रात” ऐसा हैं| जो की ओरिजनल स्टोरी “बरसात के दिन” के बहुत साम्य दर्शाता हैं| एपोसोड २ का टाइटल “दोस्ती हैं और एपीसोड ९ “बेवफा” है, जो की ओरीजनल स्टोरी में इसका जिक्र हैं।


“बरसात के दिन” के मुख्य किरदार राहुल कुमार, रीना रॉय, अरमान कपूर, बेंजामिन पालकर है, वही ज्यूबिली के मुख्य किरदार मदन कुमार, श्रीकांत रॉय, जय खन्ना, ये हैं। बरसात के दिन का स्टोरी पीरियड 1960 का Bollywood है, वही ज्यूबिली का पीरियड 1947 किया गया हैं ।

“ज्यूबीली” और १९३० बॉलीवुड कनेक्शन…

image credit by-online

जब नागनाथ जी को ज्यूबीली बॉलीवुड की पुरानी घटना पर आधारित होने की खबरों पूछा तो उपवो बोले, “इंसिडेंट से कहानी नहीं बनती| Every Story has a Different soul | उनको मालूम था एक दिन ये भी दिन आएगा, इसलिये वो ऐसा बोल रहे हैं|
SWA से जताई नाराजगी l


नागनाथ खरात ने Screen Writers Association (SWA) से नाराजगी जताई हैं|

SWA को मेल करके उन्होंने, इस बात की जानकारी देकर मदत की मांग की थी| लेकिन वहां से उन्हे कोई सहायता मिली। SWA को नए रायटर्स की फिक्र नहीं ऐसा आरोप किया हैं|
आगे जाकर उन्होंने कहा, “विक्रमादित्य मोटवाने एक अच्छे निर्देशक हैं, लेकिन इस घटना की वजह से मैं नाराज हो गया हूं ।

Edited by; Sachin Lahudkar

देश में एक राष्ट्र, एक चुनाव को लेकर बहस छिड़ी हुई है। इस मामले पर पक्ष और विपक्ष आमने-सामने हैं

 एक तरफ जहां मोदी सरकार का कहना है कि चुनाव के खर्च में कमी करने के लिए यह कदम बेहद जरूरी है। वहीं, विपक्षी दलों का मानना है कि इससे संघीय ढांचा कमजोर होगा।क्या वाकई लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराने से देश को आर्थिक फायदा होगा? एक रिपोर्ट के जरिए इस सवाल का जवाब दिया गया है।पंचायत से लेकर लोकसभा तक के चुनाव एक साथ कराने से ही चुनाव खर्च कम नहीं हो जाएगा, इसके लिए जरूरी है कि सारे चुनाव एक सप्ताह के अंदर कराए जाएं। अगर ऐसा होता है तो चुनाव पर आने वाले खर्च को घटा कर एक तिहाई किया जा सकता।

एक अध्ययन के अनुसार, स्थानीय चुनाव से लेकर लोकसभा तक सारे चुनाव एक साथ कराने पर 10 लाख करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है, लेकिन अगर सभी चुनाव एक हफ्ते के अंदर कराए जाएं तो ये खर्च घट कर तीन से पांच लाख करोड़ रुपये तक आ सकता है। पंचायत से लेकर लोकसभा के चुनाव एक साथ कराने पर ₹10 लाख करोड़ खर्च होने का अनुमान है।

साल 2019 के लोकसभा चुनावों में 60,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। लोकसभा चुनाव 2024 पर ₹1.20 लाख करोड़ खर्च होने का अनुमान है। 

विधानसभा सीटों पर खर्च 

देश में 4,500 विधानसभा सीटें है अगर साथ कराए जाए तो इस पर तीन लाख करोड़ रुपये खर्च हो सकते हैं।

स्थानीय निकाय चुनाव पर खर्च 

देश में 2.5 लाख ग्राम पंचायते हैं। 650 जिला परिषद, 7,000 मंडल, 2 लाख 50 हजार ग्राम पंचायत सीटों के चुनाव पर 4.30 लाख करोड़ रुपये खर्च हो सकते है। देश में हैं 500 नगरपालिका हैं। सभी सीटो पर चुनाव एक साथ कराने पर 1 लाख करोड़ रुपये खर्च का अनुमान है।मौजूदा तौर-तरीके, पोल पैनल कितना असरदार है और राजनीतिक दलों की ओर से चुनाव आचार संहिता का कड़ाई से पालन, ये सभी चीजें खर्च घटाने में अहम भूमिका निभाएंगी।अध्ययन के मुताबिक, अगर चुनाव को कई चरणों मे न कराया जाए तो इससे चुनाव पर खर्च कम हो सकता है, क्योकि विज्ञापन और यात्राओं पर कम खर्च होगा।

Edited by; sachin lahudkar

मोदी सरकार 18 से 22 सितंबर तक होने वाले संसद के विशेष सत्र में इंडिया का नाम बदलकर भारत करने का प्रस्ताव ला सकती है।

Aajtakkhabr: सदियों से इस देश को कई नामों से बुलाया जा रहा है। लेकिन इनमें से सबसे प्रचलित भारत है।

अंग्रेजों के आने से पहले भारत को हिन्दुस्तान, जम्बूद्वीप, भारतखण्ड, हिमवर्ष, अजनाभवर्ष,आर्यावर्त, हिन्द और हिन्दुस्तान कहा जाता था। लेकिन अंग्रेजों के आने के बाद भारत को इंडिया कहा जाने लगा।

जब अंग्रेजों को पता चला कि भारत सभ्यता सिंधु घाटी है। वहीं सिंधु नदी का दूसरा नाम इंडस भी है। सिंधु घाटी को इंडस वैली भी कहा जाता है, जिसे लैटिन भाषा में इंडिया कहा जाता है। इसलिए अंग्रेजों ने भारत को इंडिया कहना शुरू कर दिया।

ब्रिटिश शासनकाल में भारत को इंडिया बड़े पैमाने पर कहा जाने लगा। धीरे-धीरे उन्होंने अधिकारिक कागजों पर भी इंडिया लिखना शुरू कर दिया। जिसके बाद इंडिया नाम काफी प्रसिद्ध हुआ और हमारे देश को दुनिया में लोग इंडिया के नाम से जानने लगे। असल में सिंधु नदी का इंडस नाम भारत आए विदेशियों ने रखा था। सिंधु सभ्यता की वजह से भारत का पुराना नाम सिंधु भी था। जिसे यूनानी में इंडो या इंडस भी कहा जाता है। लैटिन भाषा में यही शब्द बदलकर इंडिया हो गया। अंग्रेजों को हिन्दुस्तान बोलने में परेशानी होती थी।

रिपोर्ट में यह भी कहा जा रहा है कि जी 20 के निमंत्रण पत्र पर ‘प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ की जगह ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ लिखा गया है। कांग्रेस ने भी ट्वीट कर कहा है कि G-20 सम्मेलन के लिए राष्ट्रपति द्वारा मेहमानों को भेजे गए आमंत्रण पत्र में रिपब्लिक ऑफ ‘इंडिया’ की जगह रिपब्लिक ऑफ ‘भारत’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है।

हालांकि ये कोई नई बात नहीं है कई देश अपना नाम बदल चुके हैं। लेकिन इस चर्चा के बीच देश का नाम भारत कब पड़ा और कैसे पड़ा, ये जानने की उत्सुकता लोगों में बढ़ गई हैं। तो आइए जानें देश का ‘भारत’ नाम कब और क्यों रखा गया था और क्या है इसके पीछे का इतिहास। भारतभूमि को कई नामों से जाना जाता है, लेकिन ‘भारत’ सबसे प्रचलित भारतभूमि को प्राचीनकाल से कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे जम्बूद्वीप, भारतखण्ड, हिमवर्ष, अजनाभवर्ष, भारतवर्ष, आर्यावर्त, हिन्द, हिन्दुस्तान और इंडिया। लेकिन इनमें ‘भारत’ नाम सबसे ज्यादा प्रचलित रहा है।

इसी वजह से भारत नाम, कब, क्यों और कैसे पड़ा, इसको लेकर सबसे ज्यादा धारणाएं और मतभेद है। जितनी वैविध्यपूर्ण भारत की संस्कृति है, उतनी ही ज्यादा इसको अलग-अलग कालखण्डों में अलग-अलग नाम दिए गए हैं। भारत नाम के पीछे ‘भरत’ पौराणिक कहानी पौराणिक युग में भरत नाम के कई व्यक्ति हुए हैं। अलग-अलग वक्त इन महान व्यक्तिों के नाम पर भारत का नाम रखने का दावा किया जाता है। सबसे प्रचलित पौराणिक कहानी की मानें तो, भारतवर्ष नाम ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर पड़ा है। अनेक पुराणों के मुताबिक नाभिराज के पुत्र भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम पर इस देश का नाम ‘भारतवर्ष’ पड़ा है। हिंदू ग्रंथ, स्कन्द पुराण (अध्याय 37) के मुताबिक, नाभिराज के पुत्र थे, ऋषभदेव। और ऋषभ के पुत्र भरत थे और इनके ही नाम पर इस देश का नाम “भारतवर्ष” पड़ा है।

दुष्यन्त-शकुन्तला के पुत्र भरत की भी कहानी प्रचलित ज्यादातौर लोग भारत नाम के पीछे की वजह शकुन्तला और पुरुवंशी राजा दुष्यन्त के पुत्र भरत को मानते हैं। महाभारत के आदिपर्व में इस बात का जिक्र है। . महर्षि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका की बेटी शकुन्तला और राजा दुष्यन्त के बीच गान्धर्व विवाह हुआ था। इन दोनों के पुत्र का नाम भरत हुआ था। बताया जाता है कि भरत के जन्म के बाद ऋषि कण्व ने आशीर्वाद दिया था कि भरत आगे चलकर चक्रवर्ती सम्राट बनेंगे और उनके नाम पर इस भूखण्ड का नाम भारत प्रसिद्ध होगा।

भारत नाम के पीछे की अन्य प्रचलित कहानियां इसी तरह मत्स्यपुराण में जिक्र है कि मनु को प्रजा को जन्म देने वाले वर और उसका भरण-पोषण करने के कारण ‘भरत’ कहा जाता था। इसलिए भूमि के खण्ड पर का शासन-वास था उसे भारतवर्ष कहा गया है। इसके अलावा नाट्यशास्त्र वाले भरतमुनि भी इस नाम के पीछे की वजह हो सकते हैं।

वहीं एक राजर्षी भरत का भी उल्लेख है, जिनके नाम पर जड़भरत मुहावरा ही प्रसिद्ध है। वहीं दशरथपुत्र भरत भी प्रसिद्ध हैं, जिन्होंने अपने बड़े भाई राम के वनवास के बाद गद्दी पर खड़ाऊं रखकर प्रजा की देखभाल की। वहीं मगधराज इन्द्रद्युम्न के दरबार में भी एक भरत ऋषि थे। एक योगी भी भरत हुए हैं। इतना ही नहीं भारत के नामकरण के सूत्र जैन धर्म में भी मिलते हैं। इतना ही नहींमहायुद्ध महाभारत में भी ‘भारत’ शब्द का जिक्र है। इसलिए भारत, को भारत कब से कहा जा रहा है, इसका सटीक इतिहास नहीं है। भरत या भारत शब्द का क्या अर्थ है..? कुछ इतिहासकारों का मानना है कि भारत नाम के पीछे सप्तसैन्धव क्षेत्र में पनपी अग्निहोत्र संस्कृति की पहचान है। वैदिकी में भरत / भरथ का अर्थ, लोकपाल या विश्वरक्षक, जिसे आम तौर पर शासक या राजा कहा जाता है।

वहीं बीबीसी में छपी रिपोर्ट के मुताबिक भाषाविद डॉ. रामविलास शर्मा का कहना है कि, भरत में ‘भर’ शब्द का अर्थ युद्ध और भरण-पोषण होता है। हालांकि उन्होंने ये भी कहा है कि ये अर्थ एक दूसरे से अलग भी हो सकते हैं।

Edited by: sachin lahudkar

भारत ने वह कर दिखाया, जो दुनिया का कोई देश नहीं कर सका।

Aajtakkhbhar:

 विश्व समुदाय अब भारत को और अधिक तेजी से उभरती हुई महाशक्ति के रूप में देख रहा है। इसरो ने अपने चंद्रयान-3 अभियान को न केवल बहुत कम कीमत में पूरा किया, बल्कि एक तरह से अपने बलबूते ही किया। इसी कारण दुनिया इसरो के साथ भारत का भी गुणगान कर रही है।

प्रधानमंत्री मोदी ने चंद्रयान-3 अभियान के सफल होने पर बधाई देते हुए यह सही कहा कि यह विकसित भारत का शंखनाद है और नए भारत का जयघोष है तथा इसरो की यह सफलता 140 करोड़ देशवासियों को उत्साह एवं उमंग प्रदान करने वाली है। प्रधानमंत्री ने यह भी ठीक ही कहा कि भारत की यह उड़ान चंद्रयान से भी आगे जाएगी और जल्द ही सूर्य के विस्तृत अध्ययन के लिए इसरो आदित्य एल-1 मिशन भी लांच करेगा। इसके बाद सौरमंडल को परखने के लिए दूसरे अभियान भी शुरू किए जाएंगे।

वास्तव में उस क्षण ने भारत में नई ऊर्जा, नए विश्वास और नई चेतना का संचार किया, जिस क्षण चंद्रयान का लैंडर चंद्रमा की सतह पर उतरा। इसे प्रधानमंत्री ने यह कहकर अच्छे से रेखांकित किया कि जब हम अपनी आंखों के सामने इतिहास बनते हुए देखते हैं तो जीवन धन्य हो जाता है और ऐसी ऐतिहासिक घटनाएं जीवन में चिरंजीव चेतना बन जाती हैं।

चंद्रयान-3 अभियान की सफलता से भारतीय विज्ञानियों में जो नई ऊर्जा का संचार हुआ है, उससे अन्य अनेक लोगों और विशेष रूप से तकनीकी विशेषज्ञों और इंजीनियरों को भी प्रेरणा लेनी चाहिए। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि भारत के सामने कई ऐसी चुनौतियां हैं, जो निम्न स्तरीय इंजीनियरिंग के कारण समस्याएं पैदा कर रही हैं। इन समस्याओं से पार पाने की आवश्यकता है।

बाते चाहे आधारभूत ढांचे के निर्माण की हो या शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में किए जाने वाले विकास के कार्यों की, हर जगह सुधार जरूरी है। इसरो ने चंद्रयान-3 अभियान को सफल बनाने के लिए जिस दक्षता का परिचय दिया, वह पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है। इस अभियान की बारीकियों में जाकर उसे सफल बनाने का जैसा काम किया गया, वैसा अन्य क्षेत्रों में भी इसलिए किया जाना चाहिए, क्योंकि कई बार निर्माण कार्यों की गुणवत्ता या फिर उनकी डिजाइन दोयम दर्जे की रहती है।

चंद्रयान-3 की सफलता के पीछे चंद्रयान-2 की असफलता से लिए गए सबक भी हैं। 2019 में जब चंद्रयान-2 अपना अभियान पूरा नहीं कर पाया था, तब देशवासियों को निराशा हुई थी। कुछ देशों के लोगों ने तो इसरो का मजाक उड़ाते हुए यहां तक कहा था कि भारत एक गरीब देश है और उसे पहले अपनी बुनियादी समस्याओं को दूर करना चाहिए। यह भी कहा गया था कि आखिर भारत चांद पर जाने का सपना ही क्यों देख रहा है?

इसरो ने इन सभी आलोचकों के मुंह बंद कर दिए। इन आलोचकों को इस पर ध्यान देना चाहिए कि भारत एक ओर जहां गरीबी से पार पाने की हर संभव कोशिश कर रहा है, वहीं विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में भी अपने कदम तेजी से बढ़ा रहा है। वास्तव में यही वह उपाय है, जिससे वह आत्मनिर्भर बन सकता है। मोदी सरकार ने वर्तमान कालखंड को अमृतकाल का नाम दिया है और यह संकल्प लिया है कि 2047 तक भारत को विकसित देश बनाना है।

कुछ लोग यह सवाल कर सकते हैं कि आखिर चांद के दक्षिणी छोर पर पहुंचकर भारत ने क्या पाया? ऐसे लोगों को पता होना चाहिए कि आने वाले समय में चांद को लेकर की जानी वाली खोज मानवता की भलाई में सहायक होगी। चांद में ऐसे अनेक खनिज और रसायन हो सकते हैं, जिनका दोहन करके समृद्धि की ओर बढ़ा जा सकता है। चांद को लेकर किए जाने वाले शोध यह बताने में भी सहायक होंगे कि सौरमंडल कैसे बना और विकसित हुआ? इसके अतिरिक्त इसका भी आकलन हो सकता है कि वहां इंसानों को बसाया जा सकता है या नहीं? यही कारण रहा कि प्रधानमंत्री ने चंद्रयान की सफलता को समस्त मानवता की कामयाबी करार दिया।

इस समय जहां इसरो की सफलता का डंका बज रहा है, वहीं भारत के रक्षा उद्योग के साथ सूचना एवं संचार तकनीक क्षेत्र भी आगे बढ़ रहे हैं। इसी तरह फार्मा क्षेत्र भी दुनिया में अपना नाम कमा रहा है। अब कोशिश यह होनी चाहिए कि भारत के सभी शोध-अनुसंधान एवं निर्माण संस्थान अपने कार्यों में वैसी ही उत्कृष्टता हासिल करें, जैसी इसरो ने अंतरिक्ष विज्ञान में प्राप्त कर ली है। चूंकि कोई भी देश अपने संस्थानों के माध्यम से ही विकसित बनने के साथ ही समृद्धि हासिल करता है, इसलिए सरकार को विभिन्न संस्थाओं को उत्कृष्ट शोध एवं अनुसंधान के लिए प्रेरित करना चाहिए और उन्हें पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए।

यह ठीक है कि मोदी सरकार इस दिशा में सक्रिय है, लेकिन देश के विभिन्न संस्थानों को विश्व स्तरीय तभी बनाया जा सकता है, जब उन्हें धन के अभाव का सामना न करना पड़े। भारत को एक विकसित देश बनने के लिए अभी एक लंबा सफर तय करना है। इस सफर को तभी आसान बनाकर नए भारत की नई कहानी लिखी जा सकती हैl

Edited By : Sachin Lahudkar

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोगों से 13 से 15 अगस्त के बीच हर घर तिरंगा अभियान में भाग लेने का आग्रह किया।

Aajtakkhabhar: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को लोगों से 13 से 15 अगस्त के बीच हर घर तिरंगा अभियान में भाग लेने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि तिरंगा स्वतंत्रता की भावना और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। 

हर घर तिरंगा’ अभियान ने आजादी के अमृत महोत्सव में एक नई ऊर्जा भरी है। देशवासियों को इस साल इस अभियान को एक नई ऊंचाई पर ले जाना है।

मैं आप सभी से 13 से 15 अगस्त के बीच हर घर तिरंगा आंदोलन में भाग लें और अपने फोटो इंटरनेट मीडिया पर साझा करे।

हर घर तिरंगा’ अभियान ने आजादी के अमृत महोत्सव में एक नई ऊर्जा भरी है। देशवासियों को इस साल इस अभियान को एक नई ऊंचाई पर ले जाना है।

Edited By : Sakshi wadekar