यूक्रेन के बंदरगाहों से 3,54,500 टन खाद्यान्न लेकर 12 जहाज अन्य देशों के लिए रवाना हुए हैं।
By Aajtakkhabar Admin 1 November 2022
Aajtakkhabar: रायटर्स, यूक्रेन के बंदरगाहों से 3,54,500 टन खाद्यान्न लेकर 12 जहाज अन्य देशों के लिए रवाना हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र की ओर से समझौते में समन्वयक की भूमिका निभा रहे आमिर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर कहा है कि मालवाही जहाजों को सेना द्वारा न निशाना बनाया जा सकता है और न ही उन्हें बंधक बनाया जा सकता है।
काला सागर में रूसी नौसैनिक बेड़े पर हुए हमले को कारण बताया है।
संयुक्त राष्ट्र के प्रयास से जुलाई में हुए रूस, यूक्रेन और तुर्किये के समझौते से करीब 100 दिन से खाद्यान्न का निर्यात हो रहा है। लेकिन 120 दिनों के लिए हुआ यह समझौता रूस ने पहले ही तोड़ दिया। इसके लिए उसने काला सागर में रूसी नौसैनिक बेड़े पर हुए हमले को कारण बताया है। रूस के इस फैसले से पूरी दुनिया में बेचैनी फैल गई है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भुखमरी फैलने की आशंका जताई है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भुखमरी फैलने की आशंका जताई है। बता दें कि रूस और यूक्रेन खाद्यान्न के बड़े निर्यातक देश हैं। दोनों देश दुनिया की कुल खपत का करीब 35 प्रतिशत खाद्यान्न निर्यात करते हैं। सोमवार को जो खाद्यान्न यूक्रेन से भेजा गया है वह उसका एक हिस्सा सूखाग्रस्त अफ्रीकी देशों में जाना है। वहां संयुक्त राष्ट्र ने 40 हजार टन खाद्यान्न सहायता स्वरूप भेजने का निर्णय लिया है।
लेकिन मानवता की सेवा के लिए समझौते को जारी रखने की कोशिश होगी।
रूस के समझौते से अलग होने की खबर से सोमवार सुबह अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं का मूल्य पांच प्रतिशत बढ़ गया। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा है कि रूस दुनिया को भूख का डर दिखाकर ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहा है। तुर्किये के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन ने कहा है कि इस समझौते से रूस को यूक्रेन जैसा लाभ नहीं हो रहा था, लेकिन मानवता की सेवा के लिए समझौते को जारी रखने की कोशिश होगी। एर्दोगन ने इस समझौते के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को तैयार करने में बड़ी भूमिका निभाई थी।
Edited By: Sachin Lahudkar
Related News
देश में एक राष्ट्र, एक चुनाव को लेकर बहस छिड़ी हुई है। इस मामले पर पक्ष और विपक्ष आमने-सामने हैं
एक तरफ जहां मोदी सरकार का कहना है कि चुनाव के खर्च में कमी करने के लिए यह कदम बेहद जरूरी है। वहीं, विपक्षी दलों का मानना है कि इससे संघीय ढांचा कमजोर होगा।क्या वाकई लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराने से देश को आर्थिक फायदा होगा? एक रिपोर्ट के जरिए इस सवाल का जवाब दिया गया है।पंचायत से लेकर लोकसभा तक के चुनाव एक साथ कराने से ही चुनाव खर्च कम नहीं हो जाएगा, इसके लिए जरूरी है कि सारे चुनाव एक सप्ताह के अंदर कराए जाएं। अगर ऐसा होता है तो चुनाव पर आने वाले खर्च को घटा कर एक तिहाई किया जा सकता।
एक अध्ययन के अनुसार, स्थानीय चुनाव से लेकर लोकसभा तक सारे चुनाव एक साथ कराने पर 10 लाख करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है, लेकिन अगर सभी चुनाव एक हफ्ते के अंदर कराए जाएं तो ये खर्च घट कर तीन से पांच लाख करोड़ रुपये तक आ सकता है। पंचायत से लेकर लोकसभा के चुनाव एक साथ कराने पर ₹10 लाख करोड़ खर्च होने का अनुमान है।
साल 2019 के लोकसभा चुनावों में 60,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। लोकसभा चुनाव 2024 पर ₹1.20 लाख करोड़ खर्च होने का अनुमान है।
विधानसभा सीटों पर खर्च
देश में 4,500 विधानसभा सीटें है अगर साथ कराए जाए तो इस पर तीन लाख करोड़ रुपये खर्च हो सकते हैं।
स्थानीय निकाय चुनाव पर खर्च
देश में 2.5 लाख ग्राम पंचायते हैं। 650 जिला परिषद, 7,000 मंडल, 2 लाख 50 हजार ग्राम पंचायत सीटों के चुनाव पर 4.30 लाख करोड़ रुपये खर्च हो सकते है। देश में हैं 500 नगरपालिका हैं। सभी सीटो पर चुनाव एक साथ कराने पर 1 लाख करोड़ रुपये खर्च का अनुमान है।मौजूदा तौर-तरीके, पोल पैनल कितना असरदार है और राजनीतिक दलों की ओर से चुनाव आचार संहिता का कड़ाई से पालन, ये सभी चीजें खर्च घटाने में अहम भूमिका निभाएंगी।अध्ययन के मुताबिक, अगर चुनाव को कई चरणों मे न कराया जाए तो इससे चुनाव पर खर्च कम हो सकता है, क्योकि विज्ञापन और यात्राओं पर कम खर्च होगा।
Edited by; sachin lahudkar